पूरे सत्रह दिन की हाड़तोड़ यात्रा के बाद कल अपने बसेरे पर लौटा हूँ. २३ मई की सुबह घर से निकलना हुआ था और ९ जून की सुबह फिर से अपने द्वार पर. यह एक अध्ययन- यात्रा तो थी ही, विशुद्ध घुमक्कड़ी और आत्मीय पारिवारिक प्रसंग भी इससे जुड़ा हुआ था. इस बीच प्रकृति के तरह - तरह के रंग देखने को मिले. धूप , तपन, उमस , बारिश, बर्फ़बारी के बीच जहाँ एक ओर मैदानी इलाकों की आपाधापी देखी वहीं दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश के ऊपरी क्षेत्र में हिम और हिमानी से साक्षात्कार भी हुआ. इन दिनों में अख़बार ,टीवी, रेडियो,इंटरनेट, कंप्यूटर से दूर रहने का अलग ही आनंद था.स्मृतियों में ढेर सारा 'कबाड़' इकठ्ठा कर लौटा हूँ.इसमें से कुछ - कुछ धीरे - धीरे बाहर आएगा और शब्दों की शक्ल लेगा. अभी तो यात्रा की थकन उतारने के क्रम में केलंग से वापस लौटते हुए ३० मई की शाम को रोहतांग दर्रे को पार करते हुए मोबाइल से खींची कुछ छवियाँ प्रस्तुत हैं. अब ये छवियाँ जैसी भी है लेकिन आज पंखे के नीचे बैठकर इन्हें देखकर तरावट महसूस हो रही है. देखें आपको कैसा लगता है ! खैर..
8 comments:
the stunning beauty. to call it kabad( garbage) is perhaps calling bad names to God
जी , लीजिए अब केवल छवियाँ !
ati sundar .. aankh sheetal ho gayi aisee khoobsoorat prakriti dekh kar .. ..
'रोहतांग' यानी लाशों का ढेर ! गुज़रे ज़माने में इसे पार करते हुए मारे गए लोगों की तादाद बताता है इसका नाम . इतने पास इतनी सारी बर्फ और कहीं नहीं मिलेगी सिवा फ्रिज के ! आपने सुन्दर तस्वीरें ली हैं और इसके लिए आप का शुक्रिया. वैसे वहां ट्राफिक - जाम और डीज़ल का धुआं कितना सेर मिला ?
बहुत ही सुन्दर चित्र ।
नयनोत्तेजक
वाह आंखों पर भरोसा ही नहीं होता.
अपने मोबाइल कैमरे का नाम बतावें , इनायत होगी !
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