बदल डालो उस सभ्यता और संस्कार को
जहाँ मनुष्य मनुष्य का चेहरा देखता
जाति, धर्म, गोत्र के आईने में
वसुधैव कुटुम्बकम का श्लोक बस रह गया पुराणों के पन्नों में
बदल डालो उस समाज और दुनिया को
जहाँ स्वतंत्रता की बात पुरानी
लोकाचार की बात बेईमानी
छुआछूत, ऊंची-नीच पर रोक सिमटा है संविधानों के पन्नों में
बदल डालो उस सत्ता और प्रतिष्ठानों को
जहाँ पोस्टमार्टम के नाम पर बस होती है खानापूर्ति
मामला दर्ज करने के नाम पर सिमट जाती हैं फाइलें
जाँच के नाम पार मौन हो जाती है सरकार
बदल डालो उस सरकार और इंसाफ के दरवाजों को
जहाँ गढ़े जाते हैं अनाप-शनाप आरोप-प्रत्यारोप
खाई जाती है झूठी-मूठी शपथ
जहाँ नहीं मिलता इंसाफ, नहीं मिलती किसी को सजा
बदल डालो उस संसद और विधानसभाओं को
जहाँ मुद्दे उठते और धूल में मिल जाते हैं
अपराधियों और शरीफों के चेहरे पहचाने नहीं जाते हैं
देश में जनता मरती है, सदन में भाषण होते हैं
बदल डालो उस परिवार और समाज के कानूनों को
जहाँ झूठी इज्जत के सामने खून होती है मानवता
प्यार के खातिर घोटा जाता है गला
बेटों के लिए मन्नतें और बेटी को मिलती है मौत
बस, बहुत हो चुका
आग में झोंक दो पुराणों और शास्त्रों को
आग में झोंक दो ब्राह्मणवाद के नारों को
आग में झोंक दो इज्जत के झंडाबरदारों को
क्योंकि, जिन्दगी मजाक नहीं एक हकीकत है.
10 comments:
स्वागतम।
किसी वक्त में कोई बात इसी तरह कही जा सकती है सीधे-सीधे। और इस वक्त जब साहित्य और विचार भी धर्म, परंपरा और लंपट पूंजीवाद के फासिज्म को पोसने में लगे हों तो बात को इसी अंदाज में कहना होगा.
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आग में झोंक दो पुराणों और शास्त्रों को
start to follow these पुराणों और शास्त्रों. the best solution.
आपका आक्रोश सराहनीय है भाई किन्तु बस ये नहीं जमा --- "वसुधैव कुटुम्बकम का श्लोक बस रह गया पुरानों के पन्नों में"--चूंकि आप ही देखिये वो कौन मुलुक है जिस की टीम का वर्ल्ड कप फ़ुटबाल में कोई नाम लेवा न हो और उसके ५ करोड़ ३० लाख बेगाने अबदुल्लों की शादी में दीवाने हुए जा रहे हों ! यही तो है ''वसुधैव कुटुम्बकम '' जो अमर है ! वैसे उन चैनलों वगैरह को जलाने के बाबत क्या ख्याल है जो ड्राइंग रूम में घुस के चोकलेट फ्लेवर का कंडोम बेच रहे हैं या वो झूठे किस्से जिनसे यहाँ की निरीह ,नौजवान आबादी की प्यास तो बढ़ रही है मगर बुझाने का माल उसकी पहुँच से बाहर है :) साउंड इफेक्ट --अट्टहास --फेड आउट ;)
विद्रोही स्वर में परिस्थितियाँ वास्तविक हैं ।
असहमत !
कविता ने सच कहा है
कविता में सच कहा है
सब कुछ अपना लें
आओ बदल डालें।
badalega tabhi jb jan-jan kahega...badal daalo.
तत्काल !
अभी झोंक दिया जाए !
देर की गुंजाइश नहीं !
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