Wednesday, September 29, 2010

महमूद दरवेश से डालिया कार्पेल की बातचीत - 2

एक "विनम्र कवि" की वापसी - 2

* क्या आप सोचते हैं कि शान्ति के लिए तत्परता साझा थी?

"इज़राइलियों की शिकायत है कि फ़िलिस्तीनी उन्हें प्यार नहीं करते. यह बड़ी मज़ाकिया बात है. शान्ति राष्ट्रों के दरम्यान होती है और प्यार पर आधारित नहीं होती. शन्ति समझौता कोई शादी का स्वागत-समारोह नहीं होता. मैं इज़राइलियों के प्रति घृणा को समझ सकता हूं. हर सामान्य आदमी कब्ज़े के साए में रहने से नफ़रत करता है. पहले आप शान्ति स्थापित करते हैं और उसके बाद प्यार करने या न करने जैसी चीज़ों का मुआयना करते हैं. कभी कभी शान्ति स्थापित हो जाने के बाद भी प्यार नहीं होता. प्यार एक व्यक्तिगत मसला है और उसे दूसरों पर थोपा नहीं जा सकता."


* आप किस उम्मीद की बात कर रहे हैं?

"मैं इज़राइलियों पर गाज़ा पट्टी और पश्चिमी तट पर से कब्ज़ा हटाने के लिए किसी तरह की तत्परता न दिखाने का आरोप लगाता हूं. फ़िलिस्तीन के लोग फ़िलिस्तीन को आज़ाद कराने की मुहिम में नहीं लगे हैं. फ़िलिस्तीनी उस बाईस फ़ीसदी ज़मीन पर एक साधारण जीवन बिता सकने की चाहत रखते हैं जो, वे समझते हैं उनकी मातृभूमि है. फ़िलिस्तीनियों ने प्रस्ताव किया था कि मातृभूमि और राष्ट्र के बीच का अन्तर स्पष्ट किया जाए, और उन्होंने उस ऐतिहासिक घटनाक्रम को समझा जिसने आज के हालात पैदा किये हैं, जिसमें दो क़िस्म के नागरिक एक ही धरती और एक ही देश में रह रहे हैं. इस तत्परता के बवजूद बात करने को कुछ बचा ही नहीं."

* आपने गाज़ा पट्टी का ज़िक्र किया. आप के हिसाब से वहां की नई वास्तविकता क्या है?

"बड़ी त्रासद स्थिति है. गृहयुद्ध का महौल. गाज़ा में फ़तह और हमास के लोगों के बीच जो हुआ वह एक बन्द क्षितिज को प्रतिविम्बित करता है. न कोई फ़िलिस्तीनी राष्ट्र है न फ़िलिस्तीनी आधिकारिक सत्ता, और लोग भ्रमों को लेकर आपस में लड़ रहे हैं. दोनों धड़े सरकार पर नियन्त्रण चाहते हैं. यह सब एक "अगर" है - अगर एक राष्ट्र होता, अगर एक सरकार होती, अगर इस या उस विभाग का मन्त्री होता, या एक झण्डा होता और या कोई राष्ट्रगान होता. बहुत सारा अगर-मगर है लेकिन कैसी भी सन्तुष्टि नहीं. अगर और जहां आप लोगों को क़ैद में रखेंगे - और गाज़ा पट्टी एक विशाल कैदखाना है - और कैदी गरीब हैं और उनके पास हरेक चीज़ की कमी है, वे बेरोजगार हैं और उन्हें बुनियादी चिकित्सकीय सुविधाएं मुहैया नहीं हैं, तो आप को आशाहीन लोग ही मिलेंगे. इस की वजह से आन्तरिक हिंसा की एक स्पष्टतः प्राकृतिक भावना देखने को मिलेगी.वे जानते ही नहीं कि लड़ा किस से जाए सो वे आपस में लड़ने लगते हैं. इसी को गृहयुद्ध कहा जाता है. यह मानसिक और आर्थिक और राजनैतिक दबावों के बीच होने वाला विस्फोट होता है."

* क्या आप हमास के दक्षिणपन्थ से भयभीत हैं?

“धर्मनिरपेक्ष पक्ष में एक तनातनी है, जो सांस्कृतिक बहुलता और एक राष्ट्रीय मातृभूमि में यक़ीन रखती है, और बाकी लोग हैं जो फ़िलिस्तीन को सिर्फ़ इस्लामी धरोहर के प्रिज़्म से देखते हैं. यह राजनैतिक तौर पर मुझे नहीं डराता. यह सांस्कृतिक सन्दर्भ में डरावना है. अपने सिद्धान्तों को हर किसी पर थोपने का उनका रवैया सुविधाजनक नहीं है. वे केवल एक दफ़ा के लोकतन्त्र में विश्वास रखते हैं की चुनाव के बूथों तक पहुंचा जाए और सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया जाए. इसलिए वे लोकतन्त्र के लिए एक बड़ा हादसा हैं. यह एक अलोकतान्त्रिक लोकतन्त्र है. लेकिन दोनों पक्ष फ़तह और हमास, एक दूसरे से कटे नहीं रह सकते. इस क्षण, जब कि खून गर्म है और घाव रिसने लगे हैं, किसी वार्तालाप के बारे में बात करना मुश्किल है. लेकिन अन्त में अगर हमास गाज़ा में की गई अपनी करतूतों के लिए नाफ़ी मांग ले और गाज़ा में चले अभियान के परिणामों को सुधार ले, तो किसी बातचीत के बारे में सोच पाना सम्भव हो पाएगा. हमास को एक राजनैतिक शक्ति के रूप में नकारना असम्भव है जिसके समर्थक फ़िलिस्तीनी समाज के भीतर हैं.

(जारी)

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