Monday, September 13, 2010

यानी है मांझा खूब मंझा उनकी डोर का - 5

(पिछली किस्त से जारी)

मांझे के तैयार हो जाने के बाद उसे बांस की बनी घिर्रियों में लपेटा जाता है. यह काम भी काफ़ी मशक्क्तभरा होता है और इसमें हथेलियां छिल जाया करती हैं:















जारी

3 comments:

POOJA... said...

great pics.. great work... Thank you so much for providing...

VIJAY KUMAR VERMA said...

मंझे ने बचपन की याद दिला दी .....बहुत सुन्दर

मुनीश ( munish ) said...

itz inhuman . production must be banned !thnx to Rohit.