Friday, September 3, 2010

उसे हमेशा मुख़्तसर नाम से पुकारना चाहिए

अफ़ज़ाल अहमद सैयद भारतीय उपमहाद्वीप के चुनिन्दा बड़े शायरों में हैं. उनकी कुछ कविताओं से आपका परिचय कबाड़खाने में पहले करवा चुका हूं. आज पढ़िये उनकी एक और कविता:

जिससे मोहब्बत हो

जिससे मोहब्बत हो
उसे निकाल ले जाना चाहिए
आख़िरी कश्ती पर
एक मादूम होते शहर से बाहर

उसके साथ
पार करना चाहिए
गिराए जाने की सजा पाया हुआ एक पुल

उसे हमेशा मुख़्तसर नाम से पुकारना चाहिए

उसे ले जाना चाहिए
जिंदा आतिशफ़सानों से भरे
एक ज़जीरे पर

उसका पहला बोसा लेना चाहिए
नमक की कान में
एक अज़ीयत देने की कोठरी के
अन्दर

जिससे मोहब्बत हो
उसके साथ टाइप करनी चाहिए
दुनिया की तमाम नाइंसाफियों के खिलाफ
एक अर्ज़दाश्त

जिसके सफ़हात
उदा देने चाहिए
सुबह
होटल के कमरे की खिड़की से
स्वीमिंग पूल की तरफ

(मादूम - ख़त्म, आतिशफसानों - ज्वालामुखियों, जज़ीरा - द्वीप, कान - खदान, अज़ीयत - यन्त्रणा)

बाकी कविताओं के लिंक ये रहे

शायरी मैंने ईजाद की
अगर कोई पूछे

2 comments:

Farid Khan said...

"..............
....उसके साथ
पार करना चाहिए
गिराए जाने की सजा पाया हुआ एक पुल"|

बहुत उम्दा।

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह।