Sunday, September 19, 2010

गैब्रीएल ओकारा की कविताएं

गैब्रीएल इमोमोटिमी ओकारा (जन्म १९२१-) नाइजीरिया के प्रमुख्तम कवि उपन्यासकारों में गिने जाते हैं. उनका उपन्यास ’द वॉयस’ को समूचे अफ़्रीकी साहित्य में एक धरोहर की पहचान मिल चुकी है. उम्दा उपन्यासकार ओकारा को उनकी कविता ’पियानो एन्ड ड्रम्स’ ने भी खासी ख्याति दिलाई. उनकी कविता को १९७९ का कॉमनवैल्थ पोएट्री अवार्ड प्राप्त हुआ. अपनी कविताओं में वे अफ़्रीका के लैन्डस्केप, उसकी आवाज़ों और तमाम मूड्स को पकड़ पाने में कामयाब हुए हैं. उनकी दो कविताएं प्रस्तुत हैं:

1. एक बार की बात

एक बार की बात है, बेटे
वे लोग हंसते थे अपने दिलों से
और हंसते थे अपनी आंखों से -
मगर अब वे हंसते हैं बस अपने दांतों से
जबकि उनकी बर्फ़-ढंकी आंखें
मेरी परछाईं के पीछे कुछ खोजती रहती हैं.

वाकई एक समय था
वे हाथ मिलाते थे अपने दिलों के साथ -
चला गया समय वह
अब वे हाथ मिलाते हैं दिलों के बग़ैर
जबकि उनके बांएं हाथ
मेरी खाली ज़ेबें तलाशा करते हैं.

"अपना ही घर समझओ इसे!" "दोबारा आना!"
वे कहते हैं, और जब मैं आता हूं दोबारा
और महसूस करता हूं
अपने घर जैसा, एक बार, दो बार
लेकिन तीसरी दफ़ा नहीं -
क्योंकिइ तब वे दरवाज़े भेड़ देंगे मेरे चेहरे पर.

तो मैंने बहुत कुछ सीखा है बेटे
मैंने सीख लिया है पोशाकों की तरह
कई चेहरे पहनना - घरेलू चेहरा,
दफ़्तर का चेहरा, सड़क का चेहरा, मेज़बान का चेहरा,
कॉकटेल पार्टी वाल चेहरा, हर चेहरे की तयशुदा मुस्कराहट
जैसे किसी पोर्ट्रेट के लिए.
मैंने भी सीख लिया है
सिर्फ़ दांतों से हंसना
और दिल के बगैर हाथ मिलाना
मैंने सीख लिया है "अलविदा" कहना
जबकि मैं कहना चाहता हूं "बला टली"
"आप से मिल कर अच्छा लगा" कहना
अच्छा महसूस किए बिना; और उकता चुकने के बाद
कहना "आपसे बात करना अच्छा लगा".

लेकिन यकीन करो बेटे
मैं चाहता हूं वह बनना जो मैं था
जब मैं तुम जैसा था. चाहता हूं भूल जाऊं
इन तमाम शब्दहीन बना देने वाली बातों को.
सबसे पहले तो ये
कि मैं दोबारा हंसना सीखना चाहता हूं
क्योंकि आईने में मेरी हंसी सिर्फ़ मेरे दांत दिखाती है
किसी सांप की नंगी जीभ जैसे.

तो, दिखाओ मुझे, मेरे बेटे
कैसे हंसते हंसते हैं; दिखाओ
कैसे मैं हंसता और मुस्कराता था
एक बार जब मैं था
तुम्हारे जैसा.


2. तुम हंसते थे, हंसते थे और हंसते थे

तुम्हारे कानों में मेरा गीत
जैसे मिसफ़ायर करती हुई मोटरकार
खांसी के साथ ठहर जाने वाली;
तुम हंसते थे, हंसते थे और हंसते थे

तुम्हारी आंखों में
मेरा जन्म लेने से पहले टहलना
अमानवीय था, तुम्हारी "सर्वभक्षी समझ"
के सामने से गुज़रना
और तुम हंसते थे, हंसते थे और हंसते थे

तुम मेरे गीत पर हंसे
तुम हंसे मेरी चाल पर.
तब मैं नाचा अपना जादुई नाच
बतियाते, मिन्नत करते ढोलों की लय पर
लेकिन अपनी आंखें बन्द कर
तुम हंसते थे, हंसते थे और हंसते थे

और तब मैंने अपना अन्तर्मन खोल दिया
जो आसमान की तरह चौड़ा था
लेकिन तुम अपनी कार में बैठे
और तुम हंसते थे, हंसते थे और हंसते थे

तुम हंसे मेरे नृत्य पर
तुम हंसे मेरे अन्तर्मन पर
तुम हंसते थे, हंसते थे और हंसते थे

लेकिन बर्फ़ानी था तुम्हारा हंसना
और उसने तुम्हारे अन्तर्मन को जमा दिया
तुम्हारी आवाज़ और तुम्हारे कानों को जमा दिया
तुम्हारी आंखों और तुम्हारी जीभ को जमा दिया

अब मेरी बारी है हंसने की
बर्फ़ से बनी नहीं है मेरी हंसी.
क्योंकि न मैं मोटरकारों को जानता हूं,
न बर्फ़ की चट्टानों को
मेरी हंसी है
आसमान की आंख की लपट, धरती
की लपट, हवा की लपट
समुद्रों और नदियों और मचलियों और
जानवरों और दरख़्तों की लपट
जिसने तुम्हें पिघलाना शुरू किया भीतर से
तुम्हारी आवाज़ को पिघलाना शुरू किया
तुम्हारे कानों, आंखों और जीभ को.

तब घटा एक डरा हुआ आश्चर्य
तुम और तुम्हारी परछाईं फुसफुसाए -
"ऐसा क्यों किया?"
और मैंने जवाब दिया -
"क्योंकि मेरे पूर्वजों और मुझ पर
अधिकार है धरती की जीवित ऊष्मा का
हमारे नंगे पैरों के रास्ते से,"

1 comment:

Ashok Kumar pandey said...

ओह…रविवार की शानदार शुरुआत!