Monday, September 20, 2010

मैं जूलियट हूं

पोलिश कवयित्री हालीना पोस्वियातोव्स्का की कविताएं आप कई बार कबाड़ख़ाने पर पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता:



मैं जूलियट हूं

मैं जूलियट हूं
मैं तेईस साल की हूं
मैंने एक दफ़ा छुआ था प्रेम को
कड़वा था उसका स्वाद
काली कॉफ़ी के प्याले की तरह
उसने बढ़ा दी
मेरे दिल की रफ़्तार
बेचैन
मेरा जीवित अस्तित्व
-झूलने लगी मेरी तमाम इन्द्रियां

वह चला गया

मैं जूलियट हूं
एक ऊंची बालकनी पर
दूसरों पर निर्भर
चिल्लाती हुई - वापस आ जाओ
पुकारती हुई - वापस आ जाओ
ख़ून से रंगे
अपने कटे होठों के
धब्बों से

वह वापस नहीं आया

मैं जूलियट हूं
मैं हज़ार साल की हूं
मैं ज़िन्दा हूं.

5 comments:

RAJWANT RAJ said...

bhav bhi kis trha aakar grhn krte hai ye is kvita me bkhubi prilkchhit hua hai ,bhut achchha prosne ke liye dhnywaad .

vandana gupta said...

बेहद भावपूर्ण्।

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति, प्रेम की सतत उत्कण्ठा।

Jyoti Joshi Mitter said...

nice ! its too live...as if happening in front of your eyes!

Jyoti Joshi Mitter said...

very ince and lively as if its happening right in front of your eyes!