महमूद दरवेश की कविताएं - २
रीटा और राइफ़ल
एक राइफ़ल होती है
रीटा और मेरे दरम्यान
और जो भी जानता है रीटा को
झुकता है उसके सम्मुख और शहद की रंगत वाले उसके केशों
की दिव्यता से खेलता है
और मैंने रीटा को चूमा
जब वह युवा थी
और मुझे याद है किस तरह वह नज़दीक आई थी
और कैसे मेरी बांहें ढंके थीं उन प्यारी लटों को
और मैं याद करता हूं रीटा को
जिस तरह एक गौरैय्या याद करती है अपनी धारा को
उफ़ रीटा
हम दोनों के दरम्यान लाखों गौरैयें और छवियां हैं
और बहुत सारी मुलाक़ातें
जिन्हें राइफ़ल से दाग़ा गया है
रीटा का नाम मेरे मुंह ले लिए एक भोज था
रीटा की देह मेरे रक्त का विवाह था
और मैं दो बरस खोया रहा रीटा में
और दो साल तक सोया की वह मेरी बांहों में
और हमने वायदे किए
सुन्दरतम प्यालों के दौरान
और हम अपने होठों की शराब में दहके
और हमने दोबारा जन्म लिया
उफ़ रीटा!
इस राइफ़ल के सामने कौन सी चीज़ मेरी आंखों को तुमसे दूर हटा सकती थी
सिवा एक छोटी सी नींद या शहद के रंग के बादलों के?
एक दफ़ा
उफ़, गोधूलि की ख़ामोशी
सुबह मेरा चन्द्रमा किसी सुदूर जगह जा बसा
उन शहद रंग की आंखों की तरफ़
और शहर ने बुहार दिया सारे गायकों को
और रीटा को
रीटा और मेरी आंखों के दरम्यान -
एक राइफ़ल.
1 comment:
संवेदनशील।
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