एक "विनम्र कवि" की वापसी - 4
* क्या एक ऐसी स्थिति आ सकती है कि आप स्वयं को राजनीति से सम्बद्ध कर लें. जैसा मिसाल के लिए वाक्लाव हैवेल ने किया था?
" हैवेल एक अच्छे राष्ट्रपति ज़रूर हो सकते हैं लेकिन उन्हें एक असाधारण लेखक नहीं माना जाता. मैं राजनीति करने से कहीं बेहतर लेखन करता हूं."
* क्या आप हमारे साथ यह साझा करना चाहेंगे कि आप कवितापाठ कार्यक्रम के दौरान क्या कहने का इरादा रखते हैं?
" मैं इस बारे में बात करना चाहता हूं कि मैं कारमेल से किस तरह नीचे उतरा और कैसे मैं ऊपर जा रहा हूं और मैं अपने आप से पूछता हूं कि मैं उतरा ही क्यों?"
* क्या आप को १९७० में छोड़कर चले जाने का पछतावा नहीं होता जब आप कम्यूनिस्ट युवा प्रतिनिधिमण्डल के सदस्य बनकर मिश्र गए और कभी लौटे नहीं?
"कभी कभी समय बुद्धिमत्ता पैदा कर देता है. मुझे विडम्बना शब्द के अर्थ में इतिहास सिखाया गया था. मैं यह सवाल हमेशा पूछता हूं: क्या मुझे १९७० में छोड़ कर चले जाना का पछतावा है? मैं इस नतीज़े पर पहुंचा हूं कि इसका उत्तर महत्वपूर्ण नहीं है. हो सकता है कि यह सवाल ज़्यादा महत्वपूर्ण हो कि मैं माउन्ट कारमेल से नीचे क्यों उतरा.
* आप नीचे उतरे ही क्यों?
" ताकि मैं सैंतीस साल बाद वापस लौट सकूं. यह ऐसा कहना है कि मैं १९७० में कारमेल से नीचे नहीं उतरा था और २००७ में वापस नहीं लौटा. यह सब एक उपमा है. अगर इस पल मैं रामल्ला में हूं और अगले हफ़्ते कारमेल में और याद करूं कि मैं पिछले करीब चालीस सालों से वहां नहीं रहा हूं, चक्र पूरा हो चुका होता है और इतने सालों की यात्रा एक उपमा भर रह जाएगी. चलिए पाठकों को डराना बन्द किया जाए. मैं वापसी के अधिकार की अनुभूति करने का इरादा नहीं रखता.
* और अगर एक तारामण्डल होता जो आपको गैलिली, और हाइफ़ा और अपने परिवार तक वापस लौटने में समर्थ बना सके तो?
" आप लोग उन शक्तिशाली भावनाओं के गवाह रह चुके हैं जब छब्बीस सालों की अनुपस्थिति के बाद, १९९६ में मैं पहली बार लौटा था, और मुझे एमिली हबीबी (अब मृत हाइफ़ा-निवासी लेखक) के जीवन के बारे में बन रही एक फ़िल्म के एक हिस्से के सिलसिले में उनसे मिलना था. मैं बहुत भावुक हो गया था, मैं रोया भी और मैं इज़राइल में ही रहना चाहता था. लेकिन आप आज पूछ रहे हैं, जब मैं अपने इज़राइली आइडैटिटी कार्ड को इज़राइली कार्ड से बदलना नहीं चाहता. इस से मुझे बहुत शर्म आएगी. आज प्रासंगिक बात यह है कि इन सालों में मैंने क्या किया. मैंने बेहतर लिखा, मैं विकसित हुआ, मैंने तरक्की की और साहित्यिक दृष्टिकोण से मैंने अपने देश को लाभ पहुंचाया.
* कुछ लोग इस टाइमिंग की आलोचना कर रहे हैं जब इस माह आपने अपना कवितापाठ करने का फ़ैसला लिया ख़ासतौर पर राजनैतिक स्थिति और हालिया आज़मी बिशरा मामले को देखते हुए.
" हम जीवित थे और मुझे नहीं मालूम क्या सही है और क्या नहीं. हमारा समय और हमारी टाइमिंग दो अलग-अलग चीज़ें हैं. यहां मैं पहली बार नहीं आ रहा हूं. मैं १९९६ में यहां आया था जब मैंने हबीबी के अन्तिम संस्कार के समय एक क़सीदा पढ़ा था, मैं २००० में भी यहां था जब मैंने नाज़रेथ में अपनी कविताएं पढ़ी थीं, और मैंने एक स्कूली कार्यक्रम में और फिर कफ़्र यासिफ़ में भी हिस्सा लिया था. मैं राजनैतिक दलों के आपसी संघर्षों में हिस्सा नहीं ले सकता. मैं इज़राइल में समूची अरब जनता का मेहमान हूं और इस्लामिक आन्दोलन या हदश या बलाद में फ़र्क़ नहीं करता. मैं उन सब का कवि हूं. मुझे यह भी नहीं भूलना चाहुये कि बहुत सारे कविगण हैं तो मुझ से नफ़रत करते हैं और उन लोगों के भी नफ़रत विराजमान है जो अपने को कवि कहा करते हैं. ईर्ष्या एक मानवीय भावना है, लेकिन जब वह नफ़रत में बदल जाती है तो वह कोई और ही चीज़ हो जाती है. ऐसे लोग हैं जो मुझे एक साहित्यिक समस्या के तौर पर देखते हैं, लेकिन मैं उन्हें उन बच्चों की तरह देखता हूं जो अपने आध्यात्मिक पिता के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दिया करते हैं. उनके पास मेरी हत्या करने का अधिकार है, लेकिन उन्होंने मेरी हत्या एक ऊंचे स्तर पर करना चाहिये - लिखित शब्द में."
* क्या आपके यहूदी-इज़राइली बुद्धिजीवियों के साथ सम्बन्ध हैं?
" मैं कवि यित्ज़ाक लाओर और इतिहासविद अमनोन राज-क्राकोत्ज़िन के सम्पर्क में हूं. मैंने पिछल्र बीस बरसों में कम हिब्रू पढ़ी है, लेकिन मैं कई सारे इज़राइली लेखकों में दिलचस्पी रखता हूं."
* क्या आप को इस बात से झेंप मिश्रित ख़ुशी नहीं होती कि सात साल पहले योस्सी सरीद ने, जो तत्कालीन शिक्षा मन्त्री थे, आपकी कविताओं को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की कोशिश की थी जिसका परिणाम यह हुआ था कि कुछ दक्षिणपन्थियों ने गठबन्धन को तोड़ देने की धमकी दी थी.
"मुझे इस बात में कतई दिलचस्पी नहीं कि मेरी कविताएं साहित्यिक पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाई जाएं. जब सरकार में अविश्वास प्रस्ताव आया था, मख़ौल बनाते हुए मैंने पूछा था कि इज़राइली गौरव कहां है - आप किसी सरकार को किसी फ़िलिस्तीनी कवि की वजह से कैसे गिरा सकते हैं, जब कि ऐसा करने के लिए आप के पास बाकी कारण मौजूद हैं? मेरी यह भी दिलचस्पी नहीं कि मेरी कविताएं अरब स्कूलों में पढ़ाई जाएं. मैं दर असल पाठ्यक्रमों में अपने होने को पसन्द नहीं करता, क्योंकि आमतौर पर विद्यार्थी उस साहित्य से नफ़रत करते हैं जिसे उन पर थोपा जाता है.
* आपका घर कहां है?
"मेरा कोई घर नहीं है. मैं इतनी बार घर बदल चुका हूं कि उस गहरे अर्थ में मेरा कोई घर नहीं. घर वहां होता है जहां मैं सोता, पढ़ता और लिखता हूं, और वह कहीं भी हो सकता है. मैं अब तक बीस घरों में रह चुका हूं, और मैंने हर बार अपनी दवाइयां, कपड़े और किताबें पिछले घरों में छोड़ दीं. मैं भाग जाया करता हूं.
* सिहाम दाऊद के आर्काइव में पाण्डुलिपियां, कविताएं और चिठ्ठियां हैं जिन्हें आप १९७० में छोड़ गए थे.
" मुझे नहीं पता था कि मैं नहीं लौटूंगा. मैंने सोचा था कि मैं न लौटने की कोशिश करूंगा. ऐसा नहीं है कि मैंने स्वतन्त्रतापूर्वक अपना डायास्पोरा चुना हो. दस सालों तक मुझ पर हाइफ़ा से बाहर निकलने पर पाबन्दी थी, और तीन सालों के लिए मैं नज़रबन्द रहा. मुझे किसी एक ख़ास घर के लिए ऐसी उत्कंठा नहीं है. आख़िर घर केवल इकठ्ठा की हुई चीज़ें भर नहीं होता. घर एक जगह होती है - एक वातावरण. मेरा कोई घर नहीं है.
" सभी कुछ एक सा दिखाई पड़ता है: रामल्ला अम्मान जैसा है और पेरिस जैसा भी. सम्भवतः ऐसा इसलिए है कि मुझे इच्छाओं से साथ पाला-पोसा गया था, और अब इच्छाएं करना मुझ पर जंचता नहीं, और हो सकता है मेरी भावनाएं बासी पड़ चुकी हों. सम्हव है कि तर्क ने भावनाओं को फ़तह कर लिया हो और विडम्बना सघन बन गई हो. मैं वही व्यक्ति नहीं रहा हूं."
* क्या यही वजह है कि आपने कभी एक परिवार नहीं बनाया?
"मेरे दोस्त मुझे याद दिलाया करते हैं कि मैंने दो दफ़ा विवाह किया था, लेकिन गहरे अर्थों में मुझे उसकी याद नहीं है. मुझे इस बात का अफ़सोस नहीं कि मेरा कोई बच्चा नहीं है. हो सकता है वह भला न निकलता, अटपटा सा होता. मुझे पता नहीं क्यों लेकिन इस बात का डर लगता है कि वह ठीकठाक नहीं निकलता. लेकिन इतना मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मुझे इस बात का कोई अफ़सोस नहीं है."
* तब आप को किस बात का अफ़सोस होता है??
" कि मैंने छोटी उम्र में कविताएं छपवाईं, औत्र ख़राब कविताएं. मुझे शब्दों को नुकसान पहुंचाने का अफ़सोस होता है जब कभी मैंने किसी से तीखे या असभ्य शब्दों में बात की हो. सम्भवतः मैं कुछ स्मृतियों के प्रति वफ़ादार नहीं था. लेकिन मैंने कोई अपराध नहीं किया.
* क्या आपको अपना एकाकीपन पसन्द आता है?
" काफ़ी. जब मुझे किसी डिनर पर जाना होता है तो मुझे अहसास होता है कि मुझे सज़ा दी जा रही है. हाल के सालों में मुझे अकेला रहना पसन्द आने लगा है. मुझे लोग तब चाहिये होते हैं जब मुझे उनकी ज़रूरत होती है. आप मुझे बताइये, शायद यह स्वार्थीपन हो लेकि मेरे पांच या छः दोस्त हैं, जो बहुत सारे माने जाने चाहिये. मेरी हज़ारों लोगों से पहचान है लेकिन वह कुछ मदद नहीं करती.
* बचपन की अपनी पुरानी कविताओं में से जिनके पास लौटना आज आपको मुश्किल लगता है, क्या आप मां की कॉफ़ी के बारे में लिखी कविता को भी शामिल करते हैं?
" वह कविता मैंने म’असियाहू की जेल में लिखी थी. मुझे येरूशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में काव्यपाठ के लिए बुलाया गया था और मैं हाइफ़ा में रह रहा था और मैंने सहमति दे दी [यानी यात्रा करने की सहमति; यह समय था जब इज़राइल की अरब जनसंख्या को मार्शल लॉ का सामना करना पड़ रहा था.], लेकिन मुझे वहां से कोई उत्तर नहीं मिला. मैं रेल से गया - क्या वह रेल अब भी चलती है? अगले दिन मुझे नाज़रेथ के पुलिस स्टेशन में बुलाया गया और मुझे चार माह की निलम्बित सज़ा सुनाई गई - और दो महीने की अतिरिक्त सज़ा म’असियाहू की जेल में, और वहां एस्कॉट सिगरेट के एक पीले डिब्बे पर, जिस पर एक ऊंट की तस्वीर हुआ करती थी, मैंने वह कविता लिखी जिसे लेबनानी संगीतकार मार्सेल ख़लीफ़े ने एक गीत में ढाला. इसे मेरी सबसे सुन्दर कविता माना जाता है और मैं हाइफ़ा में इसे पढ़ने जा रहा हूं."
* क्या आप बिरवा भी जाएंगे, उस गांव में जहां आपका जन्म हुआ था?
" नहीं. आज इसे यासूर कहा जाता है (एक सामूहिक बस्ती). मैं उन्हीं स्मृतियों को बचाए रखना चाहूंगा जो आज भी खुली जगहों, तरबूज़ों, जैतून और बादाम के पेड़ों में बसती हैं. मुझे उस घोड़े की याद है जिसे एक बरामदे में शहतूत के पेड़ पर बांधा गया था. मैं उस पर चढा और उसने मुझे नीचे फेंक दिया - मेरी मां ने मेरी पिटाई की थी. वह मुझे हमेशा पीटा करती थी, क्योंकि उसे लगता था कि मैं एक वाक़ई बदमाश लड़का हूं. असल में मुझे उतना शरारती होने की याद नहीं है."
" मुझे तितलियों की याद है और यह भी कि सब कुछ खुला खुला था. गांव एक पहाड़ी पर था और बाकी सारा नीचे पसरा रहता था. एक दिन मुझे जगाकर बताया गया कि हमें भागना है. युद्ध या ख़तरे की बाबत किसी ने कुछ नहीं कहा. हम लोग लेबनान पैदल चले, मैं और मेरे तीन भाई-बहन, सबसे छोटा अभी शिशु ही था और वह रास्ते भर रोता रहा था."
* क्या आपका लेखन एक कर्तव्यात्मक नियमित अनुष्ठान है आप बीते वर्षों के साथ आप में लचीलापन आया है?
" कोई स्थितियां तो नहीं हैं. हां आदतें हैं. मुझे सुबह दस से बारह के दौरान लिखने की आदत पड़ चुकी है. मैं हाथ से ही लिखता हूं. मेरे पास कम्प्यूटर नहीं है और मैं केवल घर में लिखता हूं और चाहे मैं अपार्टमेन्ट में अकेला भी होऊं मैं दरवाज़े पर ताला लगा देता हूं. मैं टेलीफ़ोनों को डिसकनेक्ट नहीं करता. मैं हर रोज़ नहीं लिखता, लेकिन मैं ख़ुद को डेस्क पर हर रोज़ जबरन बिठाता हूं. कभी प्रेरणा होती है कभी नहीं होती, मुझे नहीं मालूम. मैं प्रेरणा पर उतना ज़्यादा यक़ीन नहीं करता, लेकिन अगर वह है तो उसने इन्तज़ार करना चाहिये जब तक कि मैं उपलब्ध हो सकूं. कभी कभी सबसे अच्छे विचार ऐसी जगहों पर आते हैं जो उतनी अच्छी नहीं होतीं. बाथरूम में, या जहाज़ में, कभी रेलगाड़ी में. हम अरबी में कहा करते हैं: "फ़लां की क़लम से ..." लेकिन मैं समझता हूं कि आप हाथ से नहीं लिखते. प्रतिभा इस के तल में हुआ करती है. आपको बैठने का सलीक़ा आना चाहिये. अगर आप को बैठना नहीं आता तो आप नहीं लिख सकते. इसके लिए अनुशासन की ज़रूरत होती है."
* मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप अच्छे से नहीं सोया करते?
"मैं रात में नौ घन्टे सोता हूं और मुझे अनिद्रा की कभी शिकायत नहीं हुई. मैं जब चाहूं सो सकता हूं. लोग कहते हैं मैं बिगड़ा हुआ हूं. ऐसा कहां कहा था उन्होंने? ... हां हिब्रू प्रेस में. आप कहेंगे कि मुझे किसी किस्म का शाहज़ादा माना जाता है. शहज़ादे आम लोगों से ऊपर उठाए गए होते हैं. ऐसा नहीं है. सच यह भी नहीं है कि मैं किसी का संरक्षण कर रहा हूं. मैं शर्मीला हूं, और कुछ लोग उसे इस तरह देखते हैं मानो मैं किसी का संरक्षण कर रहा हूं."
* क्या यह तथ्य कि आप कम-अज-कम एक दफ़ा मृत्यु को छू कर आ चुके हैं, क्या आपको बुढ़ापे और शरीर द्वारा दिए जाने वाले धोख़े से डर लगता है?
"मौत का सामना मैंने दो बार किया, एक बार १९८४ में और एक बार १९९८ में, जब मुझे चिकित्स्कीय तौर पर मृत घोषित कर दिया गया था और मेरे दफ़्न की तैयारी होने लगी थी. १९८४ में, मुझे विएना में दिल का दौरा पड़ा. वह एक साफ़ आसमान में सफ़ेद बादल पर एक गहरी और आसान नींद था. मुझे नहीं लगता वह मौत थी. मैं तैरता रहा जब तक कि मुझे असह्य दर्द नहीं हुआ, और वह दर्द यह संकेत था कि मैं वापस जीवन में लौट आया था.
"१९८८ में मृत्यु आक्रामक और हिंस्र थी. वह कोई सुविधाजनक नींद नहीं थी. मुझे भयानक दुःस्वप्न आते रहे. वह मृत्यु नहीं, एक दर्दनाक युद्ध था. मृत्यु ख़ुद आपको दर्द नहीं करती."
* मृत्यु को लेकर अब आपका क्या मानना है?
" मैं उसके लिए तैयार हूं. मैं उसका इन्तज़ार नहीं कर रहा. किसी की प्रतीक्षा करने के कारण होने वाली यातना के बारे में मेरी एक प्रेम कविता है. प्रेमिका को देर हो जाती है और वह नहीं आती. मैंने कहा कि शायद वह उस जगह चली गई जहां सूरज है. शायद वह शॉपिंग पर निकल गई. शायद उसने ख़ुद को आईने में देखा और उसे अपने साथ प्रेम हो गया और उसने कहा हो कि कितनी खराब बात होगी कि कोई मुझे छुए. मैं तो खुद अपनी हूं. शायद उसकी दुर्घटना हो गई हो और वह हस्पताल में हो. शायद उसने सुबह टेलीफ़ोन किया हो जब मैं फूल और वाइन की बोतल ख़रीदने बाहर गया हुआ था. शायद वह मर गई हो क्योंकि मृत्यु मुझ जैसी है, जिसे इन्तज़ार करना पसन्द नहीं. मुझे इन्तज़ार करना पसन्द नहीं. मृत्यु भी किसी का इन्तज़ार करना पसन्द नहीं करती.
" मैंने मृत्यु के साथ एक समझौता किया और यह स्पष्ट कर दिया कि ठीक तुरन्त उपलब्ध नहीं हूं, मुझे अभी और लिखना है, काम करने को हैं. बहुत सारा काम है और हर जगह युद्ध हैं, और मृत्यु, तुम्हें उस कविता से कुछ नहीं करना जिसे मैं लिखता हूं. यह तुम्हारे मतलब की चीज़ नहीं है. लेकिन तय की जाए एक मुलाक़ात. मुझे समय से पहले बता देना. मैं तैयारी कर लूंगा. मैं बढ़िया कपड़े पहनूंगा और हम समुद्र किनारे एक कहवाघर में मिलेंगे, एक गिलास वाइन का पिएंगे और तब तुम मुझे ले जाना."
* और जीवन में?
"मैं भयभीत नहीं हूं और न ही मृत्यु के विचारों से व्यस्त रहा करता हूं. वह जब भी आएगी, मैं उसे स्वीकार करने को तैयार हूं, लेकिन उसे बहादुर होना चाहिये, और हम सारा कुछ एक झटके से ख़त्म कर लेंगे. कैंसर या दिल की बीमारी या ऐड्स जैसी विधियों से नहीं. उसे एक चोर की तरह आने दिया जाए. उसे मुझे एक लपक में ले जाने दिया जाए."
* आपको कौन सी चीज़ थोड़ा सा ख़ुश करती है?
"फ़्रैन्च में एक कहावत है कि अगर आप पचास की उम्र के बाद किसी जगह पर दर्द की अनुभूति के बिना जागते हैं तो आप मर चुके हैं, मैं हर सुबह प्रसन्न जगता हूं. बड़े अर्थ में मैं यह मानता हूं कि प्रसन्नता उतना अधिक वास्तविक आविष्कार नहीं है. प्रसन्नता एक क्षण होती है. प्रसन्नता एक तितली होती है. मैं किसी काम को समाप्त करने पर प्रसन्न होता हूं."
* मुझे ऐसा महसूस हो रहा है आप पहले से पहले से कहीं ज़्यादा समझौतावादी हो गए हैं.
" यह बात रूखी लग सकती है लेकिन उदासी का एक सौन्दर्यबोध होता है. मुझे कोई भ्रम नहीं हैं. मैं बहुत सारी चीज़ों की उम्मीद नहीं करता. अगर कोई चीज़ ठीकठाक हो जाती है तो वह महान प्रसन्नता होती है. उदासी के साथ एक ह्यूमर भी होता है. मैं एक "आशावादी" हूं [यहां एमिल हबीबी के इसी शीर्षक वाले एक नाटक को सन्दर्भित किया गया है]"
* क्या आप को हबीबी की कमी महसूस होती है?
“यह जगह थोड़ा और भरी-भरी होती अगर एमिल हबीबी उपस्थित होते. वे प्रकृति की एक ताक़त थे. उनके पास ठहाके थे और एक विशिष्ट ह्यूमर और मैं समझता हूं उन्होंने ह्यूमर की मदद से हताशा से युद्ध किया. अन्त में वे पराजित हो गए. हम सब पराजित हो जाएंगे, विजेता भी. आप को यह आना चाहिये कि विजय के क्षण किस तरह का व्यवहार करना चाहिये और पराजय के क्षण किस तरह का. पराजय को न जानने वाला समाज कभी परिपक्व नहीं हो सकता."
* बहुत दिन नहीं हुए आपने एक नई किताब समाप्त की है, एक व्यक्तिगत जर्नल, गद्य और पद्य का एक समागम. क्या आप असल में ख़ुद को पसन्द करते हैं?
" कतई नहीं. जब भी युवा कवि मेरे पास आते हैं और यदि उस समय मैं उन्हें सलाह दे सकने की स्थिति में होता हूं, मैं उन्हें बताता हूं: "एक कवि जो लिखने बैठता है और अपने आप को पूरी तरह शून्य नहीं समझता, न तो विकसित होगा न ख्याति पाएगा." मुझे लगता है कि मैंने कुछ भी नहीं किया. यही वह चीज़ है मुझे अपने लेखन अपनी शैली और अपने विम्बविधान को बेहतर करने की तरफ़ बढ़ाती है. मुझे लगता है कि मैं एक शून्य हूं और इसका मतलब हुआ कि मैं अपने आप को बहुत प्यर करता हूं. मेरा एक दोस्त है जो मुझे टेलीविज़न पर देखना बरदाश्त नहीं कर सकता. वह मुझ से कहता है कि यह रिवर्स नारसिसिज़्म है. उस हरामज़ादे ने मुझे यह बतलाया."
(समाप्त)
No comments:
Post a Comment