Saturday, October 2, 2010

रख लो मेरा पासपोर्ट !

महमूद दरवेश की एक और कविता पेश है

पासपोर्ट

उन्होंने नहीं पहचाना मुझे मेरी परछाइयों में
जो चूस लेती हैं इस पासपोर्ट से मेरा रंग
और उनके लिए मेरा घाव प्रदर्शनी में धरी एक चीज़ था
फ़ोटोग्राफ़ इकठ्ठा करने के शौकीन एक पर्यटक की तरह
उन्होंने मुझे नहीं पहचाना,
आह ... यहां से जाओ नहीं
बिना सूरज की मेरी हथेली
क्योंकि पेड़ मुझे पहचानते हैं
मुझे यूं ज़र्द चन्द्रमा की तरह छोड़ कर मत जाओ!

तमाम परिन्दे जिन्होंने पीछा किया मेरी हथेली का
सुदूर हवाई अड्डे के दरवाज़े पर
गेहूं के सारे खेत
सारी कारागारें
सारे सफ़ेद मकबरे
कांटेदार बाड़ वाली सारी सरहदें
लहराए जाते सारे रूमाल
सारी आंखें
सारे के सारे मेरे साथ थे,
लेकिन वे अलग हो गए मेरे पासपोर्ट से.

छिन गया मेरा नाम और मेरी पहचान?
उस धरती पर जिसे मैंने अपने हाथों से पोसा था?
हवा को भरता
आज जॉब चिल्लाकर बोला:
अब से मुझे किसी मिसाल की तरह मत बनाना !
अरे भले लोगो, फ़रिश्तो.
पेड़ों से उनका नाम न पूछो
घाटियों से मत पूछो उनकी मां कौन है
मेरे माथे से फट पड़ता है रोशनी का एक चरागाह
और मेरे हाथ से निकलता है एक नदी का जल
दुनिया के सारे लोगों का हृदय है मेरी पहचान
सो रख लो मेरा पासपोर्ट !

* जॉब: हिब्रू गाथाओं के मुताबिक जॉब उज़ नामक स्थान का निवासी था. दुर्भाग्यवश शैतान ने जॉब से ऐसे प्रश्न पूछे जिन्होंने आगे जाकर पाप शब्द की व्याख्या में समाहित हो जाना था.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अस्तित्व पर युद्धरत।