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'ख़ातिर' ग़ज़नवी (1925 - 2008) बड़े शायरों में गिने जाते हैं. एक शायर होने अलावा वे शोधार्थी, कॉलमनिस्ट, शिक्षाविद भी थे. 'ख़ातिर' ग़ज़नवी प्रोग्रेसिव राइटर्स असोसियेशन इन पाकिस्तान के उपाध्यक्ष भी रहे.
पचास से भी ऊपर किताबें लिख चुके 'ख़ातिर' ग़ज़नवी ने ऑल इन्डिया रेडियो और बाद में रेडियो पाकिस्तान में बतौर प्रोड्यूसर भी बहुत नाम कमाया. ख़ातिर साहब का असली नाम इब्राहीम था और वे चीनी, अंग्रेज़ी, उर्दू और मलय भाषाओं के गहरे जानकार माने जाते थे. यह बात अलहदा है कि उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति बतौर शायर ही मिली.
भारत में ग़ज़ल सुनने-सुनाने वालों को ग़ुलाम अली की गाई उनकी "कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में, बन्दे भी हो गए हैं ख़ुदा तेरे शहर में" अच्छे से याद होगी.
गज़ल के बादशाह ख़ान साहेब मेहदी हसन सुना रहे हैं उन्हीं की एक छोटी बहर की गज़ल. उस्ताद बेतरह बीमार हैं और ग़ुरबत में भी. हम सिर्फ़ उनकी कुशल की कामना भर कर सकते हैं.
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जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
ढलते ढलते रात ढली
उन आंखों ने लूट के भी
अपने ऊपर बात न ली
शम्अ का अन्जाम न पूछ
परवानों के साथ जली
अब भी वो दूर रहे
अब के भी बरसात चली
'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिल
इसमें जीत से मात भली
*डाउनलोड यहां से करें: जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली है
4 comments:
Aanandit Hue
दूर से सुन के आये थे साकी तेरे मैखाने को हम
बस तरसते ही चले अफ़सोस पैमाने को हम
गजल कुछ बहुत ज्यादा नहीं भायी.. एक आध शेर बहर से बाहर भी लग रहा है... हालांकि हम भी आज तक गजल नहीं लिख पाये.. हजल ही लिखते रहे हैं...
"कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में, बन्दे भी हो गए हैं ख़ुदा तेरे शहर
भाई ये तो बहुत मशहूर और लोकप्रिय है ... बहुत सुन्दर जानकारीपूर्ण आलेख पांडेजी ..आभार ....
शम्अ का अन्जाम न पूछ
परवानों के साथ जली
अच्छी रचना ।
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