Thursday, November 18, 2010
मेज़ पर
युगोस्लाविया के विश्वविख्यात कवि वास्को पोपा की कविताएं आज से कबाडख़ाने पर पढ़ना शुरू कीजिये. सारे अनुवाद सोमदत्त के हैं:
मेज़ पर
मेज़पोश तनता है
अनन्त तक
भुतही
छाया टूथपिक का पीछा करती है
गिलासों के खूनाखून पदचिन्हों का
सूरज ढांकता है हड्डियां
नए सुनहले गोश्त से
झुर्रीदार
अय्याशी फ़तेह करती है
गर्दन तोड़ टुकड़ों को
कल्ले उनींद के
फूट पड़े हैं सफ़ेद छाल के भीतर से
2 comments:
मुकेश कुमार सिन्हा
said...
bahut badhiya.........:)
November 18, 2010 at 4:16 PM
हिंदी-विश्व
said...
bahut accha prayas...
November 19, 2010 at 12:07 PM
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2 comments:
bahut badhiya.........:)
bahut accha prayas...
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