युगोस्लाविया के विश्वविख्यात कवि वास्को पोपा की कविताएं आज से कबाडख़ाने पर पढ़ना शुरू कीजिये. सारे अनुवाद सोमदत्त के हैं:
मेज़ पर
मेज़पोश तनता है
अनन्त तक
भुतही
छाया टूथपिक का पीछा करती है
गिलासों के खूनाखून पदचिन्हों का
सूरज ढांकता है हड्डियां
नए सुनहले गोश्त से
झुर्रीदार
अय्याशी फ़तेह करती है
गर्दन तोड़ टुकड़ों को
कल्ले उनींद के
फूट पड़े हैं सफ़ेद छाल के भीतर से
2 comments:
bahut badhiya.........:)
bahut accha prayas...
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