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राख़
वास्को पोपा (अनुवाद: सोमदत्त)
कुछ हुईं रातें कुछ तारे
हर रात जलाती अपना तारा
और नाचती काला नाच उसके इर्द-गिर्द
तारे के ख़ाक होने तक
फिर रातें होती हैं छिन्न-भिन्न
कुछ बन जातीं तारे
कुछ रही आती रातें
फिर जलाती है अपना तारा हर रात
और नाचती है काला नाच उसके इर्द-गिर्द
तारे के ख़ाक होने तक
आख़िरी रात रात और तारा दोनों होती है
ख़ुद को जलाती है
नाचती है काला नाच अपने ही इर्द-गिर्द
(चित्र: माकूच्कीना हूलिया की पेन्टिंग नाइट होरोस्कोप)
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