Friday, December 3, 2010

पंकज बसलियाल खुश हैं

पंकज बसलियाल मेरे बड़े भाई हैं| आज मेरा जन्मदिन है, तो उनकी लिखी हुई एक कविता, दिसंबर २००७ में हिन्दयुग्म में प्रकाशित, कबाड़खाने में मय समीक्षा डालने का मन हुआ| ये मेरी तरफ से उन सब बातों के लिए छोटा धन्यवाद जो उन्होंने बड़े भाई के फ़र्ज़ के तौर पर निभाई, और भी जो बिना फ़र्ज़ के निभायी| 


पंकज बसलियाल खुश हैं
यूनिकवि प्रतियोगिता के दिसम्बर अंक के ८वीं पायदान पर कविता है पंकज बसलियाल की 'मैं खुश हूँ'। इन्होंने पहली बार प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और खुद को टॉप १० में रखने में सफल रहे। यह हिन्द-युग्म के लिए बहुत खुशी की बात है कि हर माह नए-नए नगीनों तक पहुँच रहा है और उन्हें प्रोत्साहित कर उनको और बेहतर साहित्य रचने के लिए प्रेरित कर पा रहा है।

इनका जन्म उत्तरांचल के सीमावर्ती क्षेत्र में सन् १९८३ में हुआ। स्कूल से घर ४-५ किलोमीटर था और ये अकेले जाया करते थे, रास्ते भर कुछ न कुछ गुनगुनाने की कोशिश में तुकबंदी प्रारंभ की, ८वीं कक्षा में पहली कविता प्रकाशित हुई। उसी वर्ष "गुनाहों का देवता" पढ़ा तो विधिवत साहित्य से परिचय हो गया। कालांतर में कंप्यूटर इंजीनियरिंग करने के उपरांत TCS में काम करते हुए देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं... पिछले कुछ समय से अमेरिका में हैं।

संपर्क-पंकज बसलियाल
१२५ , शांतिनगर , ढालवाला,
पो.ओ. - मुनी की रेती ,
ऋषिकेश , उत्तरांचल , २४९२०१.

पुरस्कृत कविता- मैं खुश हूँ

जी , मैं खुश हूँ .
आपने सही सुना , कि मैं खुश हूँ .

शायद आज किसी को रोते नहीं देखा ,
नंगे बदन फ़ुटपॉथ पर सोते नहीं देखा ,
शायद रिश्तों की कालिख छुपी रही आज,
तो किसी को टूटी माला पिरोते नहीं देखा.

आज भी भगवान को किसी की सुनते नहीं देखा,
पर हाँ, आज किसी के सपनों को लुटते नहीं देखा,
तन्हा नहीं देखा , किसी को परेशान नहीं देखा,
पाई-पाई को मोहताज, सपनों को घुटते नहीं देखा.

बेचैनी नहीं दिखी, कहीं मायूसी नज़र न आयी ,
कहीं कुछ गलत होने की भी कोई खबर न आयी,
सब कुछ आज वाकई इतना सही क्यों था आखिर,
कि दर्द ढूंढती मेरी निगाहें कहीं पे ठहर न पायी .

मैं खुश हूं वाकई, पर कुछ हो जाने से नहीं
कुछ ना हो पाने से खुश हूँ कुछ पाने से नहीं
किसी के जाने से खुश हूँ, किसी के आने से नहीं
किसी के रूठ जाने से, किसी के मनाने से नहीं

पर ये खुशी की खनक मेरे आस पास ही थी,
कई अनदेखी आँखें आज भी उदास ही थी,
मैनें कुछ नहीं देखा, का मतलब खुशहाली तो नहीं
मेरे अकेले की खुशी, एक अधूरा अहसास ही थी..

वो दिन आयेगा शायद, जब हर कोई खुशी देख सकेगा,
बिन आँसू और गमो के जब हर कोई रह सकेगा.
खुशी सही मायनों में वो होगी तब,
"मैं खुश हूँ" ... जिस दिन हर इन्सान ये कह सकेगा..

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पढ़कर हम भी खुश हैं, कविता का संप्रेषण पूर्ण हुआ।

प्रवीण पाण्डेय said...

आपको जन्मदिन की बधाई।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

नीरज जी को जन्म दिन पर बधाई.. और इस सुन्दर कविता को शेयर करने के लिए धन्यवाद..

मुनीश ( munish ) said...

जन्म दिन शुभ हो , कविता सुन्दर है मगर ये कला और बला पक्ष के अंक दिया जाना कुछ हज़म नहीं हुआ . ऐसे मास्टरों से बचो . हाजमोला खाओ खुद जान जाओ !

पंकज थपलियाल said...

happy belated birthday neearaj ji
sadaa khush raho

Neeraj said...

@ सभी के लिए,
बहुत बहुत धन्यवाद |

@मुनीश जी,
आप सही कहते हैं, कला-बला पक्ष हटा दिया गया है |