Thursday, December 23, 2010
सत्ता,शोर बचे न बचे ! शब्द ज़रूर बचेगा - उदयप्रकाश
बहुचर्चित कवि,कहानीकार,पत्रकार उदयप्रकाश को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया है. उदयप्रकाश अपने समय के ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने बहुत साफ़गोई से अपनी बात कही है और बड़ी शिद्दत से अपने लेखन में समय,परिवेश और मनुष्य को जिलाया है. वे जब बतियाते हैं तो लगता है आपसे निहायत साधारण इंसान रूबरू है लेकिन सचाई ये है कि उदयप्रकाश बेहतरीन लेखक ही नहीं धाकड़ पढ़ाकू भी हैं और दुनिया-जहान में लिखी जा रही कविता,कहानी और उपन्यास पर नज़दीकी नज़र रखते हैं. आप उनसे बात करते हुए डिसकनेक्ट नहीं हो सकते क्योंकि उनकी बात दिल से निकलती है. दुनियाभर की एकाधिक भाषाओं में अनुदित उनकी रचनाएं किसी पहचान की मोहताज नहीं है. मोहनदास नाम की कहानी पर उन्हें अकादमी ने नवाज़ा है और वे मानते हैं कि यह पुरस्कार एक तरह की स्वीकृति है कि मैं अपना काम ठीक-ठाक कर रहा हूँ.जब मैंने उनसे पूछा कि क्या इस स्वीकृति में यह भाव भी है कि अब आप सत्ता के और क़रीब हो गये तो उनका जवाब था आप कुछ भी कहिये लेकिन मेरी ईमानदारी से मेरा पाठक वाक़िफ़ है. अवॉर्ड मिलते हैं तो अच्छा लगता है यह भी लगने लगता है कि पाठक,आलोचक और संस्थान आपके काम पर नज़र रखते हैं.
उदयप्रकाश मानते हैं किसी भी लेखक को उसके पात्र आम आदमी में ही मिलते हैं. वैसे वे यह भी कहते हैं गाँवों में बसता भारत आज के लेखन से गुम है. तमाम स्थितियाँ बाज़ार के हक़ में है और कमोबेश एक प्रोडक्ट में तब्दील हो रही है. उदयप्रकाश ने कहा कि कोई कुछ भी लिखे , सबसे पहले उसके अवचेतन में एक कवि होता है चाहे वह अरूंधति रॉय हो,चेखव हो या उदयप्रकाश. उन्होंने ख़ूसूसी तौर पर याद भी दिलवाया कि मैं मूलत: कवि हूँ और कहानीकार बाद में. उदयप्रकाश ने ठहाका लगाते हुए कहा कि मैं वह कुम्हार हूँ जिसकी उंगलियाँ अपनी मिट्टी,अपने बर्तन और चाक को पहचानती है लेकिन अनायास मैंने एक कमीज़ सिल दी है तो लोग मुझे दर्ज़ी कहने लग गये हैं.उदयप्रकाश ने कहा कविता ने मुझे पहचान और पाठक दिये हैं और आज भी कविता का इलाक़ा मुझे लुभाता है. उन्होंने कहा कि शोर ज़्यादा देर नहीं चलने वाला, भाषा और शब्द ही दीर्घजीवी हैं,वे ज़रूर बचे रहेंगे. हम किसी राजनेता का नाम शायद कुछ दिनों बाद भूल जाएं लेकिन चेखव,मुक्तिबोध,हजारीप्रसाद द्विवेदी और शमशेर बहादुरसिंह को कभी नहीं भूलेंगे.
यह पूछने पर कि फ़िल्म मोहनदास को दर्शक क्यों नही मिले ? उदयप्रकाश बोले छोटे बजट की फ़िल्म बनाने वाले एक विचित्र क़िस्म की दुविधा में होते हैं और शायद वही दुविधा इसके हश्र का कारण है. टेलिफ़ोन पर हुई इस गुफ़्तगू में उदयप्रकाश बिना रुके बोले जा रहे हैं. उनकी सादगी का क्या यह प्रमाण काफ़ी नहीं कि वे ख़ाकसार से पहली बार बतिया रहे थे लेकिन उसमें किसी प्रकार का तकल्लुफ़ या बनावट सुनाई नहीं दे रही थी . उदयप्रकाश ने मुखरता से कहा कि कविता,संगीत,कहानी,उपन्यास,चित्रकारी,फ़ोटोग्राफ़ी और शिल्पकला का आपस में एक रूहानी रिश्ता है और जो लेखक,कवि या कलाकार इन रिश्तों की गंध से अपरिचित है वह कभी क़ामयाब नहीं हो सकता. उदयप्रकाश ने कहा कि पाठक के ह्रदय में जगह बनाना सबसे मुश्किल काम है क्योंकि वह बड़ी परीक्षा लेकर स्वीकृति देता है. उन्होंने इस बात पर खेद जताया कि पूरा बाज़ार एक भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा है. सच आज गुम है. दु:ख यह है कि भ्रष्टाचार अब बेफ़िक्र होकर सत्ता के गलियारों की सैर कर रहा है. उन्होंने कहा कि तस्वीर तब बदल सकती है जब नागरिक बैख़ौफ़ होकर आवाज़ उठाए. उदयप्रकाश ने कहा कि फ़्रांस के राष्ट्रपति सरकोज़ी कॉरपोरेट्स के साथ एक कप कॉफ़ी पीते हैं तो उन्हें माफ़ी मांगनी पड़ती है जबकि हमारे यहाँ की राजनीति में क्या क्या नहीं होता फ़िर भी सब बेशरम से घूमते हैं.उदयप्रकाश साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिलने से प्रसन्न भी थे और संतुष्ट भी. तीन दशक से ज़्यादा समय से क़लम चला रहे इस घूमंतु लेखक से बात करना वैसा ही सुक़ून देता है जैसा ठिठुरन देती ठंड में धूप का आसरा मिल जाना.
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8 comments:
उदय जी को साहित्य अकेडमी ने सम्मानित कर अपनी गलती सुधारी है. उदय की कहानियां हमारे दिलों में नक्श हैं. हम उनसे लड़ते हैं, सीखते हैं. उन्हें बधाई!
उदय प्रकाश जी से मेरी चैट हुई तो जाना इतना बडा साहित्य्कार बडा ही साधारण व्यव्हार करते है
उदय प्रकाश जी को बहुत बधाई।
उदयप्रकाश जी को अकादमी पुरस्कार मिला यह बहुत अच्छी बात हुई। यह पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा।
... uday ji ko punah badhaai va shubhakaamanaayen ... behad prasanshaneey post !!!
behatar post.
pratipakshi.blogspot.com
उदय प्रकाश जी ने अपना कद खुद हासिल किया है, यह सम्मान उस पर एक मुहर है, बधाई.
uday ji ko yah samman bhale hi der se mila. par pathakon ke dilon me naksh unki kahkniyao ne unhen bahut phle hi ak samman de diya hai. "janta ka lekhak" hone ka . varna lekhak to but hai . par log kitnon ko jante hai.
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