Thursday, January 20, 2011

मेले में : एक यायावर

ख़लील ज़िब्रान के कहानी संग्रह 'The Wanderer' का हिंदी अनुवाद करना भा रहा है | प्रतिक्रियाओं से अंदाजा लगाता हूँ कि पाठकों को भी पसंद आ रहा होगा | टिप्पणियां पढ़ के अलग मजा आ रहा है, उपरवाले ने कई भांति के मनुष्य बनाये हैं | इस सिलसिले में कुछ ईमेल भी मिली हैं , जिन्होंने काम की तारीफ की है | कह नहीं सकता कि कितनी ख़ुशी मिल रही है, यकीन जानो मेरे अन्दर लेखकों का कोई और गुण हो न हो, अपने काम की तारीफ सुनने के लिए कान खड़े करने वाला गुण जरूर है |  'भगवान का पहला विचार एक देवदूत था, भगवान का पहला शब्द एक इन्सान ' इस प्रकार की बेहतरीन सत्संगी विचारों वाले ख़लील ज़िब्रान साहेब की कुछ और कहानियों का आनन्द लें |

छोटे कस्बे की बेहद खूबसूरत एक लड़की, मेला देखने के लिए आई | उसके गालों पर गुलाब की लालिमा थी , सूर्यास्त मानों उसके बालों में होता हो, और भोर उसके होंठों में मुस्कुराती हो |

इक खूबसूरत अजनबी के निगाह में आते ही सारे नवयुवक तरह तरह के बहानों से उससे मिलने आने लगे | कोई उसके साथ नाचना चाहता था, कोई दूसरा उसके सम्मान में केक काटना चाहता था | सभी उसके कुमुदनी जैसे गालों को चूमना चाहते थे, आखिर ऐसा कौन होगा जो ये नहीं चाहेगा |

बेचारी लड़की को युवकों का व्यवहार देखकर सदमा सा लगा, और उसे सारे लड़के बुरे से मालूम हुए | उसने उन्हें डांटा, कुछेक को थप्पड़ भी मारा | उसके बाद वह वहाँ से भाग गयी |

और घर आते हुए, उस शाम रोते हुए उसने अपने दिल में कहा, "घृणा होती है मुझे, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग हैं | बरदाश्त की हर हद से बाहर |"

साल गुजरा , इस दौरान उस खूबसूरत लड़की ने बहुत से मेलों और उन युवकों के बारे में सोचा | एक दिन वह फिर से उस मेले को देखने गयी | आज भी वह उतनी ही खूबसूरत लग रही थी, जैसे गुलाब की लालिमा उसके गालों पर, सूर्यास्त उसके बालों पर होता हो , और जैसे भोर उसके होंठों पर मुस्कुराती हो |

लेकिन इस बार लड़कों ने उसे देखने के बाद सर झुका लिया , देखकर अनदेखा करने लगे | और पूरा दिन उस लड़की ने अपने को काफी अनचाहा और अकेला महसूस किया |

सांझ के झुटपुटे में घर की ओर जाने वाले रास्ते पर वह लड़की अपने दिल में बहुत रोई, "मुझे घृणा होती है, कितने अशिष्ट और असभ्य लोग है | बर्दाश्त की हर हद से बाहर |"

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मध्यमार्ग भी कुछ होता है।

अरुण चन्द्र रॉय said...

खलील जिब्रान साहब को पढना सदैव ही एक नया अनुभव होता है... एक मनोवैज्ञानिक और जीवन की विडम्बनाओं की लघु कथा है यह...

शिवा said...

बहुत खूब

नीरज गोस्वामी said...

मानव मन का कोई भरोसा नहीं...हर स्तिथि में असंतुष्ट रहता है...कमाल की लघु कथा...
नीरज

अजेय said...

हम मौके खो देते हैं

vandana gupta said...

वक्त वक्त की बात है…………वक्त हमेशा एक सा नही रहता सिर्फ़ इंसान की सोच बदलती है।

सोनू said...

The Wanderer का अनुवाद मैंने पढ़ा है। सस्ता साहित्य मंडल से प्रकाशित "बटोही" यही है।