Monday, January 17, 2011

एक चीनी लोक कथा - १

परसों रात एक दोस्त के कबाड़ख़ाने में एक दुबली सी किताब मिली - ट्रेडीशनल कॉमिक टेल्स. पांडा बुक्स के इस प्रकाशन में चीन की चुनिन्दा पारंपरिक लोकगाथाएं एकत्र की गयी हैं. कल दिन-रात इसे पढ़ते हुए प्रसन्न हुआ किया. सोचता हूँ मौका मिलते ही इस किताब का अनुवाद कर दूंगा. हम लोग बस हिंदी-हिंदी करते रहते हैं. बाकी भाषाओँ के लिए उनके लोगों ने कैसी कैसी चीज़ें जुटायीं. यह मुझे इस पुस्तक को पढ़ते हुए अहसास हुआ. ऐसा ही कुछ इतालो काल्विनो द्वारा इकठ्ठा की गयीं इतालवी लोक कथाओं के खासे वृहद् संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ते हुए लगा था. मुझे हिंदी प्रदेश की सबसे युवा पीढ़ी से उम्मीद है की अनुवाद के क्षेत्र में वह बड़ा काम करने को आगे आएगी. समकालीन हिंदी का परिदृश्य इस कदर उचाट और नाउम्मीद करने वाला है कि मुझे उस में कुछ नया पा सकने कि संभावनाएं फिलहाल नज़र नहीं आतीं.

छोड़िये! चीनी लोक कथाओं के इस संग्रह से आप के लिए एक कथा का अनुवाद करना शुरू कर रहा हूँ. दोएक दिन लगेंगे. मौज आएगी. लपूझन्ने की तर्ज़ पर मनी बैक गारंटी.



तीन पदोन्नतियां

जो क़िस्सा मैं बताने जा रहा हूँ , मिंग साम्राज्य के दौर में घटा था. शांदोंग प्रदेश के लिंकिंग जिले में एक रईस आदमी अपने परिवार के साथ रहा करता था. इस परिवार के इकलौते बेटे झांग हाओगु को बहुत लाड़ के साथ पाला-पोसा गया था. झांग हाओगु कभी स्कूल भी नहीं गया. जब वह बड़ा हुआ, उसके पास फ़ालतू की चीज़ों में समय जाया करने के आलावा कोई काम नहीं होता था. हर रोज़ भरपेट खाना - पीना के चुकने के बाद वह पिंजरे में बंद अपनी पालतू चिड़िया थामे शहर की गलियों में घूमा करता था. लोगों ने उसका मज़ाक बनाने की नीयत से उसका नामकरण 'पिल्ला' कर दिया.

एक दिन ऐसे ही घूमते हुए उसने किसी चौराहे पर एक भविष्यवक्ता को देखा. भीड़ उसे घेरे हुए थी. झांग हाओगु ने उसके पास जाने का फैसला किया. जैसे ही भविष्यवक्ता ने झांग हाओगु को देखा, उसने जान लिया कि आज इस रईसजादे से मोटी रकम ऐंठी जा सकती है. वह भीड़ की अनदेखी करता हुआ झांग हाओगु के पास जाकर बोला - " बड़े भाई! आपकी आँखें बेहद तीखी हैं और भौहें मुड़ी हुईं. आप तो बहुत बड़े अफसर बनेंगे. आपका चौड़ा माथा बतला रहा है कि आप राजदरबार में कोई बड़ा काम सम्हालने वाले हैं. इस के लिए आपने इतना करना है कि बीजिंग में होने वाली एक परीक्षा में बैठना है. जब आप उस में सफल हो कर आयेंगे तो आपको बधाई देने वाला मैं पहला आदमी होऊंगा."

अगर झांग हाओगु होशमंद इंसान होता तो इस चापलूसी को सुनकर भविष्यवक्ता को पीट-पीट कर अधमरा कर देता. उसे न पढ़ना आता था, न लिखना. वह इम्तहान देने बीजिंग कैसे जा सकता था? मगर उसने इस बाबत बिलकुल नहीं सोचा. उस के मन में बस यह आया: मेरे बाप के पास बहुत पैसा है और मैं आसानी से बड़ा अफसर बन सकता हूँ. सो नाराज़ होने के बजाय उसने खुश होते हुए कहा - "क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि मैं इम्तहान में सफल हो जाऊंगा?"

"इसमें ज़रा भी शक नहीं बड़े भाई. आप तो उत्तीर्ण होने वालों की सूची में शुरू के तीन लोगों में होने वाले हैं."

"ये लो. अभी मेरे पास चांदी के यही दो सिक्के हैं. अगर मैं पास हो गया तो तुम्हें और दूंगा. नहीं हुआ तो हिसाब बाद में बराबर किया जाएगा."

भविष्यवक्ता ने मन ही मन सोचा - "पिल्ले, तब तक तो मैं पता नहीं कहाँ होऊंगा."

घर पहुँच कर झांग हाओगु ने सामान बाँधा, कुछ रकम और सोना साथ लिया और बीजिंग की राह लग लिया. उस के दिमाग में एक बार भी नहीं आया की वह अनपढ़ है और किसी इम्तहान में बैठना तक उस के लिए मुमकिन नहीं. खैर, बखत बखत की बात!

जब वह बीजिंग पहुंचा, इम्तहान का आखिरी दिन था. शहर का पश्चिमी द्वार बंद हो चूका था पर उसकी किस्मत थी की उसे शहर में पानी की सप्लाई करने वालों का साथ मिल गया. मिंग और क़िंग साम्राज्यों के दौरान राजा लोग बीजिंग के बाहरी छोर पर अवस्थित प्राकृतिक स्रोत का पानी पिया करते थे और हर शाम को घोड़ा गाड़ियाँ पानी लेकर शहर आया करती थीं. झांग हाओगु को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह इस गाड़ियों के पीछे-पीछे चलता हुआ शहर में प्रविष्ट हो गया. पहरेदारों ने भी उस पर यह सोच कर कोई ध्यान नहीं दिया की वह भी पाने सप्लाई करने वाली टीम का सदस्य होगा.

शहर के भीतर झांग हाओगु को ज़रा भी गुमान नहीं था कि इम्तेहान कहाँ हो रहा है. वह ऐसे ही गलियों में भटकता रहा. एक चौराहे पर उसने देखा कि कुछ लोग दो लालटेनें लिए चले आ रहे हैं. इस समूह के बीच में रात की पहरेदारी पर निकला एक अफसर था - राजकुमार वाई झोन्ग्ज़िआन. इस समूह को देख कर झांग हाओगु का घोड़ा बेकाबू हो गया और अफसर के घोड़े से जा भिड़ा. पुराना कोई दिन होता तो वाई ने झांग हाओगु को मरवा दिया होता क्योंकि वह सम्राट झियोंग का पसंदीदा हिजड़ा था और उसे सम्राट ने यह अनुमति दे रखी थी कि बिना रपट के वह किसी को भी मरवा दे. लेकिन आज वह जानना चाहता था कि यह अजनबी दिख रहा आदमी है कौन. उस ने अपने घोड़े कि लगाम खींचते हुए चीख कर कहा - "क्या तू जीने से थक है बे?" झांग हाओगु को क्या पता कि उस के सामने कौन है.उस ने चिल्ला कर कहा - "मुझ से इस अंदाज़ में बात न कर. मुझे एक ज़रूरी काम पर जाना है."

"क्या काम है?"

"मैं शांदोंग से यहाँ तक सिर्फ इस लिए आया हूँ कि राजकीय परीक्षा में बैठ सकूं. अगर मुझे देर हो गयी तो मैं शुरू के तीन सफल लोगों में कैसे आ पाऊंगा?"

"क्या तुम्हें पका यकीन है कि तुम शुरू के तीन में आ जाओगे?"

"अगर ऐसा न होता तो मैं यहाँ आता ही क्यों."

"मगर परीक्षा-कक्ष तो बंद हो गया होगा अब तक."

"कोई बात नहीं. मैं खटखटा कर दरवाज़े खुलवा लूँगा."

वाई ने सोचा - यह आदमी कह रहा है कि वो शुरू के तीन लोगों में होगा. क्या यह वाकई इस कदर पढ़ा-लिखा है? या सिर्फ गप्प मार रहा है.सो उस ने चीखते हुए कहा - " ठीक है! इसे मेरा कार्ड दे दो और इम्तहान में बैठने दो." वाई यह देखना चाहता था कि यह आदमी कितना काबिल है.

(अगला हिस्सा रात तक)

3 comments:

Neeraj said...

भैजी, ये तो शेखचिल्ली टाइप की कहानी होने जा रही ... मौज आएगी |

अनुवाद करने में एक ही पिरोब्लम हैं, अनुमति कहाँ से लावें |

animesh said...

सर्वप्रथम तो हार्दिक बधाइयां इतनी अच्छी पहल के लिए. दूसरी संस्कृति की कहानियाँ एवं साहित्य हमारा ज्ञानवर्धन करते हैं और उन्हें गहराई से समझने में सहायता करते हैं. रही बात इस कथा की तो ये इतनी रोचक बन पड़ी है कि रात तक प्रतीक्षा करना भारी मालूम हो रहा है. बहुत अच्छे... कहानी के शेष भाग की प्रतीक्षा में
Just like that...

सोनू said...

अंग्रेज़ी की छलनी से अनुवाद करना भी तो बुरा है। आपसे उम्मीद करूँ कि आप आप स्पानी के भी कुशल अनुवादक बनेंगे?

देवेंद्र सिंह रावत ने सार-संसार में एक बार चीनी कविता विशेषांक पेश किया था।