Thursday, February 17, 2011

गगन गिल की कविता

निस्संतान

कभी कभी वह बिलकुल भूल जाती
जिसे वह इस बार
बता रही है तीन साल का
पिछली बार वह
तेरह का था
पांचवी में पढ़ती थी
बच्ची जो
अब आठवीं में आ गयी है
जबकि उन्हें मिले अभी
छःमहीने ही गुज़रे हैं
पिछली बारी दोनों में से
एक बहुत अच्छा गाता था
जबकि इस बार कह रही है वह
दोनों अच्छे निकल रहे हैं
गणित में
नाम तक गडबड है उसकी स्मृति में
सहेलीवाले आ गए हैं
उसकी ज़ुबान पर.

बहुत दिन हुए
ईश्वर ने चुरा लिए थे
उनके बच्चे
अब वे सिर्फ उन्हें
ढूंढती फिर सकती हैं.

- गगन गिल

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्यार की मार्मिक दृष्टि।

सिद्धान्त said...

kavita beshaq acchi hai, lekin yahan gagan gill ne jis vishay ko bayaan karne ka andaaz ijaad kiya hai, wah tareeka hmesha se mujhe priy rha hai.