Tuesday, March 1, 2011

जो गाह-गाह जुनूं इख्तियार करते रहे



हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
जब जुल्म ए सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव तले
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी

हम देखेंगे
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मन्ज़र भी
उट्ठेगा अनल - हक़ का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो



 Iqbal Bano - Hum Dekhen Ge .mp3
Found at bee mp3 search engine
पुनश्च : माफ़ कीजिये, आप लोगों ने अगर ये कई बार सुना है | मेरे जैसों के लिए तो दुनिया अभी जादू का खिलौना ही है | आज ही सुना है और एक बार जो सुना तो पूरे दिन इसी को सुनता रहा, सो सुन लीजिये आप भी |

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत अच्छा देखा, कर्मप्रिय।

वीना श्रीवास्तव said...

सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मन्ज़र भी

बहुत अच्छी रचना...

अरुण अवध said...

सूनी भी है ,पढी भी है !
एक अज़ीम शायर का कलाम
जब भी सुनों ,जब भी पढो - नया ही लगता है !

iqbal abhimanyu said...

फैज़ साहब और इक़बाल बानो.. वाकई क्या बेजोड़ जोड़ी है. गर आप रोज़ सुनवाएँगे तो हम रोज़ सुनेंगे. मैं भी अपने दोस्तों के साथ फैज़ गाने की कोशिश करता हूँ. "दरबार-ए-वतन"