Friday, March 4, 2011

रिपीट पोस्ट - सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

ये पोस्ट कोई साल भर पहले लगी थी एक सीरीज में. उस सीरीज में ये मेरी सबसे पसंदीदा है. दोबारा लगा रहा हूँ बुरा न मानियेगा.

और

जिसने नज़ीर नहीं पढ़ा उसने कुछ नहीं पढ़ा.



जब फूल का सरसों के हुआ आके खिलन्ता
और ऐश की नज़रों से निगाहों का लड़न्ता
हमने भी दिल अपने के तईं करके पुखन्ता
और हंस के कहा यार से ए लकड़ भवन्ता

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

एक फूल का गेंदों के मंगा यार से बजरा
दस मन का लिया गुंथा, आठ का गजरा
जब आंख से सूरज के ढला रात का कजरा
जा यार से मिलकर ये कहा ए मेरे रजरा

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

थे अपने गले में तो कई मन के पड़े हार
और यार के गजरे भी थे एक धवन की मिकदार
आंखों में नशे मै के उबलते थे धुंआधार
जो सामने आता था यही कहता था ललकार

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

पगड़ी में हमारी थे जो गेंदों के कई पेड़
हर झोंक में लगती थी बसन्तों के तईं ऎड़
साक़ी ने भी मटके से दिया मुंह के तईं भेड़
हर बात में होती थी इसी बात पे आ छेड़

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

फिर राग बसन्ती का हुआ आन के खटका
धोंसे के बराबर वो लगा बाजने मटका
दिल खेत में सरसों के हर एक फूल से अटका
हर बात में होता था इसी बात का लटका

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

जब खेत पे सरसों के दिया जा के कदम गाड़
सब खेत उठा सर के ऊपर रख लिया झंझाड़
महबूब रंगीलों की भी एक साथ लगी झाड़
हर झाड़ से सरसों के भी कहती थी अभी झाड़

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

साथ लगा जब जो अजब ऐश का दहाड़ा
जिस बाग़ में गेंदों के गए उसको उजाड़ा
देखी कभी सरसों कभी नरगिस को उजाड़ा
कहते थे इसी बात को बन, झाड़, पहाड़ा

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

ख़ुश बैठे हैं सब शाहो वज़ीर आज अहा हा
दिल शाद हैं अदना ओ फ़क़ीर आज अहा हा
बुल्बुल की निकलती है सफ़ीर आज अहा हा
कहता यही फिरता है 'नज़ीर' आज अहा हा

सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता

4 comments:

Udan Tashtari said...

बुरा मानने का कहाँ प्रश्न है, पुनः आनन्द उठाने की बात है.

abcd said...

बसन्त के मौसम से भी जादा असर है--इस्मे /
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
ऐश ओ’ ऐयाशी का बिगुल लपक्के बजन्ता,
सबकी तो बसन्तें हैं पै यारों का बसन्ता
<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<
वाह जनाब !

प्रवीण पाण्डेय said...

हमने तो पहली बार पढ़ा है, आनन्द आ गया।

DHARMENDRA LAKHWANI said...

Badiya hai ashok bhai..
Shukriya.