Tuesday, March 29, 2011

अपनी कहो अब तुम कैसे हो

आज एक भला काम यह हुआ कि ग़ज़लों से ताल्लुक रखने वाले अपने ब्लॉग सुख़नसाज़ पर कई महीनों बाद एक नई पोस्ट लगाई. एक पोस्ट परसों के लिए शिड्यूल की. ग़ज़लें अपलोड करते हुए ख़याल आया कि कबाड़ख़ाने पर भी बहुत दिनों से कुछ संगीत नहीं आया है. लगे हाथों ग़ुलाम अली की गाई मोहसिन नक़्वी की ग़ज़ल क्यों न आप लोगों के सामने पेश कर दी जावे -




सैयद मोहसिन नक़्वी उर्दू के बड़े शायरों में शुमार किये जाते हैं. पाकिस्तान के डेरा ग़ाज़ी ख़ान के नज़दीक सादात गांव में जन्मे मोहसिन ने गवर्नमेन्ट कॉलेज मुल्तान और पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से पढ़ाई की. मोहसिन का असली नाम ग़ुलाम अब्बास था. लाहौर आने से पहले ही वे मोहसिन नक़्वी के नाम से ख़ासे विख्यात हो चुके थे. उन्हें अहल-ए-बैत का शायर भी कहा जाता था. करबला के बारे में रची उनकी शायरी समूचे पाकिस्तान में गाई जाती है. उनकी शायरी में अलिफ़-लैला के क़िस्सों सरीखी रूमानियत नहीं थी. इस के बरअक्स वे किसी भी अमानवीय शासक की धज्जियां उड़ाने से ग़ुरेज़ नहीं करते थे. इसी वजह से १५ जनवरी १९९६ को लहौर के ही मुख्य बाज़ार में उनका कत्ल कर दिया गया.


इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचों में गुम रहते हो

तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो

हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

(कल आपको उनकी एक और मशहूर ग़ज़ल सुनवाता हूं.)

4 comments:

Neeraj said...

अशोक भाई, चित्रपट भी शुरू किया जाए ...

बाबुषा said...

Thanks for this treat to ears sir !

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन ग़ज़ल है...जब से सुनी है तब से कभी भी जुबां पर आ जाती है...छोटी बहर की बेहतरीन ग़ज़ल जो मुझे पसंद है और रहेगी...गुलाम अली जी ने कमाल किया है...

नीरज

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहकरीन व उम्दा गज़ल।