Thursday, March 17, 2011

‘कोका कोला के सबक’ से: एक बूढ़ी स्त्री की डायरी

करीब तीन एक साल पहले यह पोस्ट कबाड़खाने पर कबाड़ी सरदार अशोक पांडे द्वारा लगाई जा चुकी है |

एक बूढ़ी स्त्री की डायरी : शुन्तारो तानिकावा

अनुवादकीय नोट :

‘बूढ़ी स्त्री ’ (ओल्ड वूमन) से मूल जापानी शब्द ‘ओबासान’ का सही सही अर्थ समझ में नहीं आता। ‘ओबासान’ का सबसे नजदीकी अर्थ ‘छोटी मां’ हो सकता है जो किसी भी स्त्री सम्बंधी या आदरणीय स्त्री के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

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किनारे पर उकड़ूं बैठी है वह बूढ़ी स्त्री । उसके पीछे एक विशाल चिमनी धुआं उगल रही है। आप उससे नहीं कह सकते कि अब यह करो तुम बूढ़ी स्त्री । उससे नहीं कह सकते कि अब यह करो। बूढ़ी स्त्री होती है बूढ़ी स्त्री । वह कह रही है कि आज रात वह थोड़ा सा कोन्याकू उबालेगी।

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उसने अभी अभी क्या कहा वह भूल जाती है और फिर से दोहराती है वही कहानी। आप समझते हो कि वह गुस्से में है पर अगले ही पल वह खुश नजर आने लगती है। पुराने दिनों में मैं बढ़िया चावल पकाया करती थी मगर देखो कैसे जल गए हैं वे।जो भी हो क्या फर्क पड़ता है। भुला दिया जाता है जल जाना। मगर कितने शर्म की बात है ! किसी भी चीज को इस तरह जला देना! अपने में खोई बूढ़ी स्त्री किसी और पर दोष मढ़ देती है। इस मुश्किल बूढ़ी स्त्री के भीतर पुराने समय की कर्मठ बूढ़ी स्त्री लुकाछिपी खेल रही है। क्या कहीं चली गई बूढ़ी स्त्री ? नहीं वह यहीं है। सूरज में दमकते अपने सुन्दर सफेद केशों के साथ वह बनी रहती है जिन्दा।

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बूढ़ी स्त्री कहती है छोड़ो जाने दो ¸ कहती है वह। एक टूटी कील से फंसकर फट गया था एप्रन। उस आदमी ने झटक लिए थे अपने हाथ। वह एक नालायक आदमी है; गुस्से में है बूढ़ी स्त्री । हालांकि यह घटा था तीस साल पहले पर फड़फड़ाते नथुनों के साथ कुछ देर के लिए बूढ़ी स्त्री वाकई बहुत गुस्सा होती है।

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केवल दिखाई देने वाली बूढ़ी स्त्रियां ही नहीं होतीं सारी बूढ़ी स्त्रियां। किसी वाइरस की तरह बूढ़ी स्त्रियां मुझे लगातार नष्ट करती जाती हैं। न दिखाई देने वाली बूढ़ी स्त्रियां ज्यादा खतरनाक होती हैं दिखाई देने वाली बूढ़ी स्त्रियों से¸ और अब मैंने उनमें और अपने आप में फर्क करना बन्द कर दिया है। न दिखाई देने वाली बूढ़ी स्त्रियोंको देखने के लिए मैं बूढ़ी स्त्रियों के स्केच बनाने की कोशिश करता हूं। इम्म्यूनिटी? किस काम के होते हैं इस तरह के शब्द?

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चाय के दाग लगे चटखे हुए बरतन का बहुत ख्याल रखती है बूढ़ी स्त्री । जब वह उस बरतन से प्याले में चाय डाल रही होती है वह बेहद गरिमावान लगती है। फिर वह खामोशी से अखबार पर निगाह डालती है ; वह अच्छे से जानती है कि छोड़े गए एक बच्चे की कहानी और जबरिया सत्ता परिवर्तन की खबर का बराबर महत्व है क्योंकि दोनों का प्रिन्टसाइज़ एक है। बूढ़े लोगों को मिलने वाले चश्मों की तीन जोड़ियां खो चुकी है वह। यह चौथी है।

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हमारे संसार में किसी भी चीज को स्पष्ट नाम दे पाना सम्भव नहीं होता। जिस तरह खाना बनाने का बरतन बहुत सी ऐसी चीजों से बना होता है जो खाना बनाने का बरतन नहीं होतीं¸ उदासी भी उसी तरह पुराने समय की असंख्य भयानक रूप से थका देने वाली चीजों की परछाईं भर होती है। ब्लैक होल की तरह एक नाम अपने भीतर निगल जाता है सारे नाम। नाम जड़ जमाते हैं बेनाम में। (जल्दबाजी में जोड़ा गया एक नोट।)

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बूढ़ी स्त्री कहती है कि संसार एक बेहतर जगह बन के रहेगा। लेकिन दुनिया ऐसी होती है वह कहती है। दीवार की तरफ मुंह किए रोती है बूढ़ी स्त्री । मैंने देखा है उसे। मैं कुछ नहीं कर सकता सिवा उसे देखते चले जाने के। मैं भयाक्रान्त तरीके से असहाय हूं। और कई दफे मुझे अहसास होता है कि उसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती। इस कदर खूबसूरत है वह।

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मुझे इस खौफनाक सच्चाई का अहसास हो गया था कि दुनिया में कविता के सिवाय किसी चीज का अस्तित्व नहीं होता। सारी चीजें और सारी संभव चीजें कविताएं होती हैं; भाषा के जन्म के बाद से ही यह एक अकथनीय सत्य है। मैं हैरत करता हूं कि खुद को कविता से आजाद करने के लिए हर किसी ने कितना कुछ नष्ट किया। जो भी हो यह रही है एक बेहद मुश्किल बहस। इस कदर बेतहाशा बेतुकी लगने वाली बातचीत।


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जब भूख लगती है बूढ़ी स्त्री एक बरतन में कुछ खोज लेती है और उसे मुंह में ठूंस लेती है। कभी तो वह लगातार तीन दिनों तक नहाती है और कभी पूरे महीने नहीं नहाती। अपने खोए हुए चीथड़ा अन्तर्वस्त्र चुरा ले जाने वाले को वह गालियां देती है। उस वक्त वह गद्दे के नीचे छिपा कर रखे हुए स्टाक सर्टिफिकेट्स के बारे में भूल जाती है। टुकड़ों में तब्दील कर दी गई है यह स्त्री। उसके भीतर एक और बूढ़ी स्त्री रह रही है। वह उन छोटे बक्सों जैसी है जो मुझे बचपन में तोहफे में मिले थे। एक बक्से के अन्दर एक और ¸ फिर उसके अन्दर एक और छोटा बक्सा और उसके अन्दर एक और भी छोटा बक्सा और उसके अन्दर ॰॰॰ । किसी छिपी हुई चीज को खोजने के लिए वह एक के बाद एक उन्हें खोलती जाती है लेकिन वह उस खालीपन तक कभी नहीं पहुंचती जहां बक्से पहुंचते हैं। इस बारे में बात करना बेमानी है कि असली बूढ़ी स्त्री कौन सी है ; निश्चय ही वह विरोधाभासों और संशयों से भरपूर है। सो वह अतिशय ईमानदार स्त्री से मुझे कभी कभी बेहद नफरत होने लगती है। क्योंकि जो मुझ पर लदी है वह मैं ही हूं।

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मैं किसी भी वक्त ले जाए जाने के लिए तैयार हूं ¸ बूढ़ी स्त्री कहती है। लेकिन जब तक मुझे ले जाया नहीं जाता में मरने नहीं जा रही¸ वह कहती है। अपनी चीजों का ख्याल रखने में नाकाम, वह हमेशा दूसरों के मामलें में टांग अड़ाती है। बस मुझे अकेला छोड़ दो¸ कहती है बूढ़ी स्त्री।मैं नहीं कह सकता कि इस तरह से आत्मसम्मान का मैं थोड़ा इस्तेमाल नहीं कर सकता। क्योंकि बूढ़ी स्त्री के सामने मैं आखिरकार मैं बन जाता हूं।

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दुनिया एक सनकभरी रजाई है। हालांकि पागलपन की तरह उस में तमाम रंग और कपड़े चिप्पी किए गए हैं ¸ उसके चार किनारे बहुत दक्षता के साथ सिए गए हैं। सौ साल पहले उत्तरी अमेरिका में रही होगी कोई बूढ़ी स्त्री बिल्कुल इस बूढ़ी स्त्री की तरह। किसी बड़ी नदी के नजदीक¸ पेड़ों के झुरमुट में¸ शहर की सीमा के जरा सा बाहर किसी जर्जर मकान के अहाते में।

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शायद किसी दिन मैं भी बन जाऊंगा वही बूढ़ी स्त्री। शायद मैं अभी से बन चुका हूं वह बूढ़ी स्त्री। मेरा नाम¸ मेरा धन¸ मेरा भविष्य¸ मेरा यह, मेरा वह … इनमें से कोई भी चीज मुझे बूढ़ी स्त्री से अलग नही कर सकती। मेरे हाथ¸ मेरे बाल¸ मेरे शब्द¸ गुजरती हुई मेरी चेतना¸ वे सारी चीजें जिन्हें मेरा कहा जा सकता है और उस बूढ़ी स्त्री की तमाम चीजें - अण्डों की तरह एक सी नजर आती हैं।

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एक कुत्ते का पेट सहलाती हुई वह बूढ़ी स्त्री कुत्ते से दबी जबान में बात करती है। कुत्ते के आनन्द से उसे बहुत खुशी मिलती है। हैरत करते हुए कि क्या वह बूढ़ी स्त्री कुत्ते को अनन्त तक दुलारती जाएगी¸ मैं उस दृश्य से आंखें नहीं हटा पाता। तो भी आखिरकार बूढ़ी स्त्री धीरे धीरे उठती है और घर के भीतर जाती है। मेरे भीतर बचती है उखड़ी सांसों वाली एक संवेदना जिसे मैं किसी भी तरह कोई नाम नहीं दे सकता।

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

विचारों के सुन्दर टुकड़े।