Friday, May 20, 2011

रहना नहिं देस बिराना है


पंडित जितेंद्र अभिषेकी(21 सितम्बर 1929 – 7 नवम्बर 1998) हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी विशिष्ट गायन शैली के लिए जाने जाते हैं. इसके अलावा १९६० के दशक में मराठी रंगमंचीय संगीत के पुनरुत्थान का कार्य अकेले कर दिखाने का श्रेय भी उनको जाता है.

अभिषेकी मंगेशी, गोआ के एक पुजारी ब्राह्मण नवाते परिवार में जन्मे थे. परम्परा से उनका परिवार गोआ में भगवान शिव के मंगेशी तीर्थ से जुड़ा हुआ था. मास्टर दीनानाथ मंगेशकर के भतीजे और शिष्य उनके पिता बलवन्तराव, मन्दिर में पुजारी और कीर्तनकार थे. उन्होंने ही अपने पुत्र को भारतीय शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सिखाईं. बाद में वे बम्बई आ गए जहां जितेंद्र अभिषेकी ने पंडित जगन्नाथबा पुरोहित, जयपुर घराने की गुलाबबाई जसदानवाला और आगरा घराने के उस्ताद अज़मत हुसैन ख़ान से विधिवत शिक्षा पाई. अपनी ख़ास गायनशैली में पंडित जी ने मराठी नाट्यसंगीत और भजनों के क्षेत्र में खासा नाम कमाया.

आज सुनिए उनसे राग भैरवी में कबीरदास जी का एक भजन:

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही भाती है यह रचना।

मुनीश ( munish ) said...

i think he was a real pandit !