कबीरदास जी का एक और भजन पुनः पण्डित कुमार गन्धर्व के स्वर में
"राम निरंजन न्यारा रे
अंजन सकल पसारा रे...
अंजन उत्पति ॐकार
अंजन मांगे सब विस्तार
अंजन ब्रहमा शंकर इन्द्र
अंजन गोपिसंगी गोविन्द रे
अंजन वाणी अंजन वेद
अंजन किया ना ना भेद
अंजन विद्या पाठ पुराण
अंजन हो कत कत ही ज्ञान रे
अंजन पाती अंजन देव
अंजन की करे अंजन सेव
अंजन नाचे अंजन गावे
अंजन भेष अनंत दिखावे रे
अंजन कहाँ कहाँ लग केता
दान पुनी तप तीरथ जेता
कहे कबीर कोई बिरला जागे
अंजन छाडी अनंत ही दागे रे
राम निरंजन न्यारा रे
अंजन सकल पसारा रे...
1 comment:
अद्भुत है ....
किन शब्दो मे शुक्रिया अदा करु ,ये सुन्वाने के लिये ?!
कबिर दास जी,कुमार जी और अशोक जी आप तीनो को साधुवाद /
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