(पिछली किस्त से जारी)
अध्याय ३
मार्च
ग़ुलाब की पंखुड़ियों के सॉस में पकी बटेर
सामग्री:
१२ ग़ुलाब, लाल हों तो बेहतर
१२ अखरोट
२ छोटे चम्मच मक्खन
२ छोटे चम्मच स्टार्च
२ बूंदें ग़ुलाब का अर्क
२ छोटे चम्मच सौंफ़
२ छोते चम्मच शहद
२ फांक लहसुन
६ बटेर
१ पिताया
बनाने की विधि:
ग़ुलाब की पंखुड़ियों को सावधानी से अलग करें. कोशिश करें कि कांटे उंगलियों में न चुभें क्योंकि इस से दर्द तो होता ही है. पंखुड़ियों में ख़ूमन लग जाने से न केवल व्यंजन का स्वाद बदल सकता है, ख़तरनाक रासायनिक प्रक्रियाएं भी होने का अन्देशा रहता है.
लेकिन तीता को यह सब कैसे याद रहता क्योंकि वह तो ग़ुलाबों का दस्ता मिलने से कांप रही थी; वह भी पेद्रो का दिया हुआ. बहन की शादी के बाद पहली बार उसके भीतर पेद्रो के लिए भावनाएं उमड़ रही थीं. पेद्रो ने औरों की चौकना निगाहों से बचकर उससे अपने प्रेम को दुबारा सुनिश्चित किया था. मामा एलेना की आंखें उतनी ही तेज़ थीं, पहले जैसी, क्योंकि उन्हें मालूम था कि पेद्रो और तीता के अकेले में मिलने का क्या परिणाम होगा. उन्होंने अपनी नायाब तरकीबों के चलते अपने मकसद में कामयाबी पाई थी - आज घर की स्त्रियों में तीता ही रसोईघर का ज़िम्मा सम्हालने की काबिलियत रखती थी. और रसोई के स्वाद, गन्ध और उनके प्रभाव मामा एलेना के शासन के परे थे.
(माफ़ करेंगे आज तबीयत नासाज़ होने की वजह से इतना ही टाइप कर पा रहा हूं. कल इस शानदार अध्याय का काफ़ी लम्बा हिस्सा आपको पढ़ने को मिलेगा. गारन्टी.)
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