Saturday, May 7, 2011

अपना नकाब उतारता है आसमान - मार्सिन स्विएतलिकी की कविता - ३


शीर्षकहीन

मैं पैलेस ऑफ़ आर्ट्स को जाने वाली
सीढ़ियां बुहार रहा हूं. यह कोई उपमा नहीं है
असली बात है. थोड़ा ज़्यादा नकदी.
कविता को किसी तरह अपना जीवन चलाना होता है. कविता को भोजन चाहिए होता है..
वसन्त का मौसम है. सर्दियां छोड़ गई हैं अपने पीछे अपनी गर्द -
यह सफ़ेद पदार्थ इतनी आसानी से बदल जाता है गीले
काले और चिपचिपे गाद में. यह ढेर सिगरेट की ठुड्डियों, कागज़ों, चिड़ियों की बीट
कुत्तों की टट्टी का और वह शायद
मानव-विष्ठा है.
इसमं भी कोई उपमा नहीं है - असली बात है यह.
शब्दों के मेरे इस्तेमाल ने मुझे
पहुंचाया है इस जगह तलक. बादल घिर रहे हैं.
सारा कुछ बहा कर नहीं ले जाएगी बारिश.


मंगलवार, मार्च

यहां
हम होंगे प्रेमी, एक पपड़ाते मकान में
हम एक दूसरे के सामने से गुज़रेंगे, चौराहों पर
भीतर तक छीलते हुए

गद्दे को? निश्चित ही एक गद्दा, सिर्फ़ गद्दा,
और ऐशट्रे? एक ऐशट्रे, दो प्याले
और कटोरे, एक केतली, एक तश्तरी, दो,
और संगीत? संगीत, अन्तहीन संगीत

धीमे-धीमे परतें, और और परतें
परछाईं की परत, देह के ऊपर हाथ, हौले से
बुनावट, हौले से खुरदरापन

अपना नकाब उतारता है आसमान
अलग होता है, किसी परदे की तरह
सामने प्रकट होती है एक साफ़-रोशन गुफा.

एम. - काला सोमवार

वह क्षन जब सारे शहर की सड़कों की रोशनियां
जलती हैं एक साथ. वह क्षण जब तुम कहती हो
अपना अविश्वसनीय "नहीं", और अचानक मैं नहीं जानता
मुझे अब क्या करना चाहिए - मर जाना? दूर चले जाना? कोई प्रतिक्रिया न देना?
धूप में वह क्षण जब मैं तुम्हें देखता हूं बस के भीतर से,
तुम्हारा चेहरा उस से फ़र्क जैसा वह होता है जब तुम जानती हो मैं तुम्हें देख रहा हूं
-और अब तुम मुझे नहीं देख सकतीं, तुम शून्य को देख रही हो, मेरे सामने की
कांचदार चमक को. अब और नहीं मैं, मेरे साथ नहीं,
इस तरह नहीं, यहां नहीं. कुछ भी
हो सकता है, चूंकि सब कुछ होता है. हरेक चीज़ तीन
बुनियादी स्थितियों में परिभाषित है - स्त्री के ऊपर पुरुष,
पुरुष के ऊपर स्त्री, या जैसे इस वक्त
- स्त्री और पुरुष रोशनी से विभाजित.

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

विचार की नयी विमा।

बाबुषा said...

ठेठ और संवेदनशील !