"कहीं कोई होना चाहिये जिसे आप नहीं जानते
पर उसने मुझ पर कब्ज़ा कर रखा है;
मेरे जीवन, मेरी मृत्यु पर;
कागज़ का यह टुकड़ा."
इतनी शिद्दत से कविता को प्यार करने वाले, बहुत कम उम्र में चल बसे प्रतिभाशाली पोलिश कवि राफ़ाल वोयात्चेक की कुछेक कविताएं आप कुछ समय पहले से यहां पढ़ रहे हैं. आज उनकी एक और कविता पेश करता हूं -
बहुत हौले से बोलता हूं तुमसे
बहुत हौले से बोलता हूं तुमसे मानो चमक रहा होऊं
उन सितारों की तरह जो खिलते हैं रक्त की चरागाह पर
मेरी आंखें लगी हुईं तुम्हारे रक्त के सितारे पर
और बहुत हौले से बोलता हूं मैं - जब तक कि सफ़ेद नहीं हो जाती मेरी परछाईं
तुम्हारी देह के लिए मैं एक ठण्डा द्वीप हूं
जो गिरता है रात के भीतर, एक गर्म नन्हीं बूंद,
बहुत हौले से बोलता हूं तुमसे मानो सपने में होऊं
तुम्हारा पसीना आग पकड़ चुका मेरी त्वचा पर
बहुत हौले से बोलता हूं तुमसे किसी चिड़िया की मानिन्द
सुबह के वक़्त सूरज फिसल आता है तुम्हारी आंखों में
बहुत हौले से बोलता हूं तुमसे
जैसे एक आंसू जो चेहरे पर झुर्रियां बना देता है
बहुत हौले से बोलता हूं तुमसे
जैसे तुम बोलती हो मुझसे.
(चित्र - विताली सादोव्स्की की पेन्टिंग राफ़ाल वोयात्चेक)
1 comment:
सच मे काबिल-ए-तारीफ़ रचना है। पढवाने के लिये आभार्।
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