आज रस्किन बॉन्ड का ७७वां जन्मदिन है. इस अवसर पर प्रस्तुत है पिछले साल पूर्व पत्रकार शालिनी जोशी द्वारा लिया गया बॉन्ड का इन्टरव्यू एक बार पुनः
जनाब रस्किन बॉन्ड का यह साक्षात्कार देहरादून में रहनेवाली पत्रकार शालिनी जोशी द्वारा लिया गया है. इसे उपलब्ध कराया है उनके हमसफ़र श्री शिवप्रसाद जोशी ने. शिवप्रसाद जोशी हाल तक जर्मन रेडियो डॉयचे वैले से सम्बद्ध थे. वापस आकर फ़िलहाल देहरादून में हैं. इधर उन्होंने हिलवाणी के नाम से एक वैबसाइट शुरू की है जिसका लिंक पिछले कुछ दिनों से आपको कबाड़ख़ाना में सबसे नीचे बमय मास्ट के नज़र आ रहा होगा. शिवप्रसाद जी कबाड़ख़ाने से जुड़े नवीनतम कबाड़ी हैं. देहरादून पर उनकी एक पोस्ट यहां पहले लगाई जा चुकी है. उनकी दिलचस्पियों का दायरा विस्तृत है और एक अच्छे गद्यकार के तौर पर वे अपने को बाक़ायदा स्थापित कर चुके हैं. फ़िलहाल इस पोस्ट को हमें यहां लगाने का मौक़ा देने के लिए उनका आभार.
भूतों के पास चला जाता हूं
जो भी मसूरी आता है, उनके बारे में पूछता है, कहां रहते हैं, कैसे दिखते हैं और यहां तक कि लोग सीधे उनके घर तक चले आते हैं.
76 साल की उम्र में भी रस्किन बॉन्ड को लेकर एक दीवानगी सी है. उनकी शख्सियत सांताक्लॉज की तरह है. सरल, रोचक, हंसमुख और बच्चों पर न्यौछावर. मसूरी के निवासियों में वो बॉन्ड साहब के नाम से जाने जाते हैं. 500 से ज्यादा रोचक कहानियों, उपन्यासों, संस्मरणों और अनगिनत लेखों के साथ एक लंबे समय से बच्चों और बड़ों सबका मनोरंजन करनेवाले मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड आज अंतरराष्ट्रीय ख्याति के रचनाकार हैं. उनकी कुछ चर्चित किताबें हैं – ए फ्लाइट ऑफ पिजन्स, घोस्ट स्टोरीज फ्रॉम द राज, डेल्ही इज नॉट फ़ार, इंडिया आई लव, पैंथर्स मून ऐंड अदर स्टोरीज़ औऱ रस्टी के नाम से उनकी आत्मकथा की श्रृंखला.
रस्किन का जन्म 1934 में हिमाचल प्रदेश में कसौली में हुआ था मगर कुछ ही समय बाद उनका परिवार देहरादून आ गया और तब से रस्किन देहरादून और मसूरी के होकर रह गये. मसूरी में उनके घर , आई वी कॉटेज में 12 जून को जिस दिन ये इंटरव्यू लिया ,उस दिन बारिश हो रही थी और हल्की सर्दी भी थी. लंढौर में बस अड्डे पर लगे जाम के कारण उनके घर पंहुचने में कुछ देर हो गई तो हिचक हो रही थी कि एक बुजुर्ग लेखक को इस तरह से इंतजार कराना गलत होगा .लेकिन जब उनके घर पंहुची तो वो इंतजार ही कर रहे थे .उन्हें ये भी याद था कि आज से 15 साल पहले जब मैं जी न्यूज की संवाददाता थी तो उनसे बिना अप्वाइंटमेंट लिये इंटरव्यू लेने चली आई थी.उन्होंने छूटते ही कहा कि चलिये इस बार आपने पहले से बता तो दिया कि आपको मुझसे बातचीत करनी है . औऱ फिर जब बातो का सिलसिला शुरू हुआ तो रस्किन खुलकर मिले और खुशमिजाज ढंग से .
रस्किन का घर भी उनकी किसी कहानी की तरह ही दिलचस्प है. लकड़ी की छत और लकड़ी का फ़र्श. एक कमरा, उस कमरे में एक मेज़, एक कुर्सी और एक पलंग. रस्किन यहीं पर लिखते पढ़ते और सोते हैं. एक और कमरा जहां वो आने वालों से मिलते हैं. और वहीं पर किताबें हैं पुरानी शेल्फ़ और कुछ पुरानी तस्वीरें.
आपने अभी हाल ही में अपना 76वां जन्मदिन मनाया.इस उम्र में भी आप बच्चों के लिये कैसे लिख लेते हैं?
इस उम्र में शायद ज्यादा लिखता हूं बच्चों के लिये. इस बुढ़ापे में मुझे खुद अपने बचपन की भी ज्यादा याद आती है.अब जब इतना लंबा समय बीत गया है.
कहा भी जाता है कि बच्चे और बूढ़े समान होते हैं
हां ये सच है जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं एक तरह से बच्चों की तरह बनते जाते हैं और उनमें अपना बचपन ढूंढते हैं. यही कारण है कि बच्चे अपने माता-पिता की बजाय दादा-दादी और नाना-नानी से अधिक घुल-मिल जाते है. ये जरूर है कि आज बड़े-बुजुर्गों से कहानी सुनने की परंपरा खोती जा रही है क्योंकि परिवार ढीले होते जा रहे हैं और बच्चे कंप्यूटर,टीवी औऱ सीडी से चिपके हैं.
क्या बच्चों के लिये लिखना आसान है?
नहीं, ये ज्यादा कठिन है.बच्चों को आप शब्दजाल में नहीं बांध सकते .बड़े तो शायद आपको एक –दो पन्ने तक मौका दे दें लेकिन बच्चों को अगर कोई रचना शुरू से ही रोचक औऱ सरस नहीं लगी तो वो दूसरे पन्ने को हाथ भी नहीं लगाएंगे.इसलिये बच्चों के लिये लिखते हुए कड़ा अनुशासन और मेहनत करनी होती है. मुझे बच्चों के लिये लिखना इसलिये भी अच्छा लगता है क्योंकि उनके विचारों में ताजगी और सवालों में ईमानदारी होती है. इसी बात पर रस्किन एक किस्सा सुनाते हैं “मैं किसी स्कूल में गया था वहां टीचर ने एक बच्ची से पूछा कि तुम्हें रस्किन कैसे लेखक लगते हैं तो उसने अन्यमनस्कता से कहा कि हां ठीक ही हैं. ही इज़ नॉट बैड राइटर. इस टिप्पणी को मैं अपने लिये एक तारीफ मानता हूं.”
आपने पहली बार कब और क्या लिखा?
उस समय मैं स्कूल में ही था. मैंने अपने स्कूल, टीचर और हेडमास्टर के बारे में कुछ मजाक बनाकर लिख दिया था. मेरे डेस्क से दोस्तों ने निकाल कर पढ़ लिया.टीचर से शिकायत हो गई .मेरे लिखे को फाड़कर फेंक दिया गया और मुझे उसकी सजा भी मिली. लेकिन मैंने स्कूल में ही तय कर लिया था कि मुझे लेखक बनना है और स्कूल से पास आउट होते ही मेरी पहली रचना रूम ऑन द रूफ प्रकाशित हुई.
आप अपनी कहानियों के पात्र कहां से लाते हैं? कैसे योजना बनाते है?
लोगों में मेरी दिलचस्पी रहती है.उनका चरित्र मुझे आकर्षित करता है.ज्यादातर मेरे दोस्त,रिश्तेदार और रोजाना मिलनेवाले लोगों से ही मैं प्रेरणा लेता हूं.कभी हूबहू कभी उन्हें औऱ निखारकर गढ़ता हूं.मेरे दिमाग में एक खाका बन जाता है.मैं बहुत ज्यादा तैयारी या कोई साल भर की योजना भी नहीं बनाता.
आपने तो भूत-प्रेतों की कहानियां भी लिखी है. ये तो असल जिंदगी के नहीं होंगे!
जब-जब मैं लोगों से परेशान और बोर हो जाता हूं भूतों के पास चला जाता हूं.हालांकि मैं बताना चाहूगा कि मैं निजी तौर पर किसी भूत को नहीं जानता हूं लेकिन मैं उन्हें अक्सर महसूस करता हूं .कभी सिनेमाघर में,कभी किसी बार में ,रेस्तरां में या दरख्तों के आसपास और जंगल में.फिर मैं अपनी कल्पना से उन्हें पैदा करता हूं एक जादुई संसार बनाता हूं .
आप क्या कंप्यूटर पर लिखते हैं?
नहीं मैं कंप्यूटर चलाना जानता ही नहीं. पहले टाइपराइटर पर लिखता था लेकिन कंधे में दर्द हो गया तो अब हाथ से ही लिखता हूं .यहीं इस कमरे में मेज –कुर्सी पर और जब थक जाता हूं तो दोपहर को एक झपकी जरूर ले लेता हूं. (रस्किन का घर औऱ उनका कमरा भी उनकी किसी कहानी की तरह ही दिलचस्प है. लकड़ी की छत और लकड़ी का फ़र्श. एक कमरा, उस कमरे में एक मेज़, एक कुर्सी और एक पलंग. रस्किन यहीं पर लिखते पढ़ते और सोते हैं. एक और कमरा जहां वो आने वालों से मिलते हैं. और वहीं पर किताबें हैं पुरानी शेल्फ़ और कुछ पुरानी तस्वीरें.)
आपकी रचनाओं पर फिल्म बनी और अभी भी एक थ्रिलर बन रही है.
जुनून बनी फ्लाइट ऑफ पिजन पर फिर विशाल भारद्वाज ने नीली छतरी बनाई.अब वो मेरी एक भुतहा कहानी सुजैनाज़ सेवन हसबैंड पर फिल्म बना रहे हैं लेकिन फिल्म का टाइटल कुछ ज्यादा ही खतरनाक रख दिया है सात खून माफ. ये एक ऐसी औऱत की कहानी है जो एक के बाद एक 7 शादियां करती है और हर पति की मौत रहस्यमयी स्थितियों में हो जाती है. इसमें प्रियंका चोपड़ा हैं और उसके पतियों की भूमिका में नसीरूद्दीन शाह औऱ जॉन अब्राहम आदि है.
सुनने में आया है इस फिल्म में आप खुद भी अदाकारी कर रहे हैं.
मुझे बूढा बिशप बनना है.आमतौर पर बिशप के पास एक रम की बोतल होती है.लेकिन मुझे नहीं लगता कि मुझे ऐसी कोई बोतल मिलनेवाली है. (रस्किन मजाक करते हैं और खुलकर हंसते हैं)
अगर आपके बीते दिनों की बात करें तो आप ब्रिटेन भी गये थे.
उस समय मैं 17 साल का था.मुझे जबरन लंदन भेज दिया गया था.लेकिन मैं भागकर चला आया.मैंने अपने आपको वहां फिट नहीं पाया.मेरा बचपन और जवानी यहां बीती थी .वापस लौटने की कसक इतनी ज्यादा थी कि मैं वहां रुक ही नहीं पाया.
कभी इस फैसले का मलाल हुआ?
नहीं कभी नहीं .
मैं भारतीय हूं ठीक वैसे ही जैसे कोई गुजराती या मराठी होगा . मेरी जड़ें यहीं है .
आपने रहने के लिये मसूरी को चुना.पहाड़ों में रहना कैसा है?
आज 40 सालों से यहां रहते हुए कह सकता हूं कि मैं पहाड़ों में रहा इसलिये ही आज तक जिंदा हूं.यहां रहना सुंदर है और यहां की शांति का कोई मुकाबला नहीं है.
आपने विवाह नहीं किया. ऐसा क्यों?
नहीं नहीं ऐसा नहीं था मैंने दो-तीन बार कोशिश की लेकिन दूसरी तरफ से कोई उत्साहजनक जवाब नहीं मिला .उस समय मैं बहुत कम कमाता था.लोग मानते थे कि अरे ये तो ऐसे ही है कुछ लिखता-विखता है. आज कमाता तो हूं लेकिन अब मुझ बुढ्ढे से कौन शादी करेगा .(रस्किन एक औऱ मजाक करते हैं ) लेकिन मैंने शादी भले नहीं की मगर आज अकेला नहीं हूं .मेरा परिवार है.मेरे पोते हैं .मेरी अच्छी देखभाल होती है.(रस्किन ने काफी पहले एक बच्चे को गोद लिया था औऱ आज वो बच्चा बड़ा हो गया है और उसका भरा-पूरा परिवार है जो रस्किन के साथ ही रहता है)
लेकिन आपके लेखन में अकेलापन दिखता है .एक तरह की एकांतिकता. कैसे?
शायद इसलिये कि मेरा बचपन बहुत अकेला था.10 साल का था जब मेरे पिता गुजर गये.फिर मां ने दूसरी शादी कर ली. मैं बहुत मुश्किल से परिवार में ऐडजस्ट हो पाता था. अकेला मीलों तक चलता था. गुमसुम बैठा रहता था. ये बात वी एस नायपॉल ने भी कही है कि मैं उन कुछ लेखकों में हूं जिनके लेखन में एकांतिकता का भाव है.
लेकिन आज तो सिर्फ आपकी किताबें ही नहीं आप खुद भी बहुत लोकप्रिय है
शायद मेरी थुलथल देह और तोंद की वजह से ... असल में इधर 5-6 सालों से ऐसा हुआ है कि लोकप्रियता बढ़ती हुई दिख रही है .वरना मैं तो संकोची स्वभाव का हूं .पहले मैं सिर्फ एक नाम था लेकिन अब टेलीविजन और मीडिया का बढ़ता प्रसार है.मुझे प्रकाशक इधर-उधर ले जाते है.कभी बुक रीडिंग सेशन है,कभी स्कूल है तो कभी ऑटोग्राफ कैंपेन है.
आप एक तरह से आज के स्टार लेखक हैं .और आपके बेशुमार फैन हैं .कैसे सामना करते हैं आप उनका?
पागल हो जाता हूं .कई बार टूरिस्ट सीधे घर चले आते हैं. उन्हें भगाना पड़ता है.मुझे इसका दुख भी होता है लेकिन क्या करूं एक लेखक की भी तो मजबूरी होती है. कभी दिल्ली से स्कूल का ग्रुप आ जाता है जिन्हें रस्किन पर प्रोजेक्ट बनाने का एसाइनमेंट ही दिया जाता है.किसी को फोटो खींचनी है किसी को इंटरव्यू करना है. मुझ पर ये एक तरह की बमबारी है. अन्याय ही है. उन्हें समझना चाहिये कि एक लेखक को भी अपना काम करना होता है.उसमें बाधा नहीं पड़नी चाहिये .
आप किस तरह से याद किया जाना चाहेंगे?
एक तोंदियल बूढ़ा जिसकी दोहरी ठुड्डी थी. (हंसते हैं..). मैं चाहूंगा कि लोग मेरी किताबें पढ़ते रहें .कई बार लोग जल्द ही भुला दिये जाते हैं. हालांकि कई बार ऐसा होता है कि मौत के बाद कुछ लोग और प्रसिद्ध हो जाते हैं. मुझे अच्छा लगेगा कि लोग मेरे लेखन का आनन्द उठाते रहें.
मैं रस्किन की कुछ फोटो लेती हूं.उनके घर के कमरे से एक खिड़की खुलती है जहां से मसूरी की पहाड़ियां नजर आती हैं. रस्किन उस खिड़की को खोलते हैं ठंडी हवा का झोंका भीतर आता है और वो खुद अपनी पूरी जिंदगी और रचना कर्म की यादों में डूब जाते हैं उन्होंने सचिन तेंदुलकर पर एक कविता लिखी है. मुझे देते हैं - 'इसे पढ़ियेगा'. साथ ही अपनी एक किताब पर शुभकामना लिखकर वो मेरे बेटे के लिये देते हैं. मैं उनसे विदा लेती हूं और एक बार फिर सोचती हूं कि सादगी और सरलता से रहना भी शायद एक रचना की तरह है.
-शालिनी जोशी
(यह इंटरव्यू कादम्बिनी के अगस्त अंक में प्रकाशित हुआ है, वहां से साभार)
5 comments:
बहुत ही उम्दा और खूबसूरत साक्षात्कार है | इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
बहुत बढ़िया इंटरव्यू ... रस्किन को पढना..उनके बारे में पढना हमेशा अच्छा लगता है!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
badhiya,aabhar.
रस्किन बाण्ड मेरे पसंदीदा लेखकों में से रहे हैं। उनकी कहानी 'द काइट मेकर' मुझे आज भी याद आती है। उनका उपन्यास 'रूम ऑन दि रूफ' भी बहुत अच्छा लगा। इस उपन्यास पर 'जुनून' नाम से फिल्म भी बनी जो मुझे बहुत अच्छी लगी। इसके अलावा उनकी कहानियों पर आधारित एक टी0वी0 सीरियज 'एक था रस्टी' भी दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था जो मुझे बहुत अच्छा लगता था।
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