Saturday, May 14, 2011

मार्सिन स्विएतलिकी की एक और कविता

समकालीन पोलिश कविता में बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण नाम माने जाने वाले मार्सिन स्विएतलिकी की कई कविताएं यहां पोस्ट्की जा चुकी हैं. आज एक और -


क्य़ा तुम्हें पसन्द है यह बग़ीचा?

जब मैं अपना धूप का चश्मा उतारता हूं
और भी ख़ौफ़नाक है यह संसार जिसमें मैं हूं.
लेकिन यह वास्तविक है. सच्चे रंग
रेंग रहे हैं अपनी सही -सही जगहों की तरफ़.
एक सांप फ़िसलता जाता है हर उस चीज़ के ऊपर से
जो उसके रास्ते में आती है. उसने हमें भी छुआ है.

बर्फ़ गिरती है और हरेक चीज़ को ढंक लेती है.
शहर को अब भी देखा जा सकता है - एक काला
कंकाल, जिसे यहां-वहां छोटी कारों की हैडलाइटों ने
चमका रखा है, मैं एक सुविधापूर्ण जगह पर बैठता हूं
और देखता हूं. शाम है. सारे मेले-उत्सव
बन्द हो चुके अब.

शाम. आदमी लौट रहे हैं अपनी लूट के साथ.
ईर्ष्यालु पादरी बस अपने आप को बचाए रखने में
समर्थ. एक कुत्ता कुछ देर हमारी बग़ल में चलता रहा
गंधाता हुआ. मेरे व्यक्तिगत दस्तावेज़
अलग-थलग हो चुके. अलग-थलग हो चुकी
हर चीज़ जिसे प्यार किया मैंने. अलबत्ता मैं अब भी साबुत हूं एक.

मेरे बारे में कुछ नहीं है संविधान में.

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अपना नाम संविधान में ढूढ़ते सब।

मुकेश "जैफ" said...

सुन्दर