Wednesday, June 1, 2011

दूर दक्षिण से एक ताज़ातरीन गीत

कुछ समय पहले उरुमी नाम से एक मलयालम फ़िल्म बनी थी. खूब चर्चा में भी रही; सिर्फ केरल में ही नहीं बाहर भी. एक कारण तो यह कि अब तक की यह दूसरी सबसे महँगी मलयालम फ़िल्म थी और दूसरा यह कि इस फ़िल्म की कहानी एक प्रसिद्ध योद्धा पर आधारित है. हालाँकि केलु नामक इस नायक के बारे में ऐतिहासिक तथ्य मौजूद नहीं हैं किन्तु उसके अस्तित्व को नाकारा भी नहीं जा सकता. माना जाता रहा है कि केलु नयनार को अमरीका जैसी आफ़त खोजने वाले वास्को ड गामा की हत्या का काम सौंपा गया था. हत्या का कारण निश्चित ही अमरीका की खोज नहीं था. सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में वास्को ड गामा पुर्तगाल की ओर से पुर्तगाली आधिपत्य वाले भारतीय भूभाग के वायसराय थे.

संतोष सिवान का नाम हिंदी सिनेमावालों के लिए नया नहीं है. असोका जैसी बेवकूफ़ाना फ़िल्म बनाने वाले सिवान ने कुछ बेहतरीन फ़िल्में भी बनायीं हैं जैसे तहान. उरुमी भी उन्ही की फ़िल्म है और फ़िल्म के कुछ दृश्य देखने के बाद मैं कह सकता हूँ कि सिनेमाटोग्राफी के कमाल को नाकारा नहीं जा सकता. संतोष पेशे से सिनेमाटोग्राफर हैं और इस फ़िल्म में सिनेमाटोग्राफी भी उन्हीं की है.

जानता हूँ बात खिंचती जा रही है फिर भी एक बात और जोड़ना ज़रूरी लग रहा है. कुछ अरसा पहले मेरे एक मलयालम मित्र ने मुझसे पूछा कि हिंदी फ़िल्मों में पश्चिमी वाद्यों का इस्तेमाल इतना ज़्यादा क्यों होता है? उसके सवाल पूछने की वजह मुझे मालूम थी इसलिए मैं उसकी जिज्ञासा शांत कर सका. ऐसा नहीं कि दक्षिण भारतीय फिल्मों में पश्चिमी वाद्यों का इस्तेमाल नहीं होता, मगर मलयालम सिनेमा मलयाली लोगों की ही तरह बाकी के दक्षिण भारतीय सिनेमा से कुछ हद तक अलग है. किसी भी वाद्य का इस्तेमाल हो मगर गीत सुनने में भारतीय ही लगता है. उरुमी फ़िल्म के कुछ गीत कर्णप्रिय हैं और मेरे ख़याल से ऐसा इसलिए है क्योंकि संतोष ने संगीतकार दीपक देव को पश्चिमी वाद्यों के इस्तेमाल से दूर रहने की हिदायत दी थी. इसका असर गानों में दीखता है और आपको लगेगा की आप वाकई सोलहवीं शताब्दी में बैठे ये गाने सुन रहे हैं. फ़िल्म के बाकी गीतों की बनिस्पत चिम्मी चिम्मी गीत ज़्यादा प्रसिद्ध हुआ है. इस फ़िल्म के संगीत की प्रसिद्धी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बंगलौर में जहाँ वैसे मलयाली गाने नहीं सुनाई देते, वहां भी चिम्मी चिम्मी यदा कदा सुनाई दे जाता है.

नीचे गीत का वीडियो लगा रहा हूँ जिससे सिनेमाटोग्राफी की भी थोड़ी झलक मिल जाये. साथ ही गीत के बोल भी. हिंदी तर्जुमे की उम्मीद इस ग़रीब के साथ ज्यादती होगी क्योंकि मलयालम को मैं भारत की सबसे ज़्यादा  विदेशी भाषा मानता हूँ. मेरे आधे से ज़्यादा सहकर्मी मलयाली हैं मगर कोई भी इस गीत का तर्जुमा करने को तैयार नहीं हुआ. ज़्यादातर लोग इस बारे में ही निश्चित नहीं थे कि गीत में चिम्मी चिम्मी कहा गया है या चिन्नी चिन्नी.


Chimmi chimmi minni thilangana
vaaroli kannanukk
poovarash pootha kanakkane
anjunna chelanakk..
nada nada annanada kanda theyyam mudiyazhakum
nokk vellikinnam thulli thulumbunna chele..
(chimmi chimmi)
kolathiri vazhunna nattile valiyakarenne
kandu kothikum
illatholloramba kore neram kandu kaliyakum
samothiri kolothe anunga
mullapoo vasana ettumayangum
valittenne kannezhuthikkan varmukilodivarum
poorampodi paariyittum poorakaliyaditum
nokkiyilla nee ennitum neeyenthe
(chimmi chimmi)
poovambante ola chuvachoru
karimpuvillathe padathalava
vaaleduth veeshalle njanath murikin poovakkum..hmm
allimalar kulakadavile ayaluthi pennunga kandupidikum
nattunadappothavar nammale kettunadappakum
enthellam paditum mindathe mindittum
mindiyilla nee ennitum neeyenthe

9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच में, बहुत अच्छा लगा गीत।

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छा लगा यह जानकर, पढ़कर।

अजेय said...

उस ने कहा चिन्नि चिन्नि ..... श्योर!

abcd said...

असोका जैसी बेवकूफ़ाना फ़िल्म बनाने वाले सिवान
..........
!!!!!!!!!!!!!!!
?????????????????????

फ़िल्म बनाना किसी युद्ध से कम तो नही ही होता है /
कलिन्ग का युद्ध जितकर भी अशोक हार गया,
और सारे श्रेश्ट्तम सन्साधन जुटाने के बाद भी सीवन की अशोक हार(flop) गयी/

१) आप्को chimmi और chinni का difference clear नही,
२) आप्के दोस्त भी नही जान्ते/जो मल्याली है/
३) hindi translation की उमीद आप्से ज्यादती होगी /

इतने सब के बाद आप छ्प भी रहे है,और हुम इत्ने खाली है की आप को पड भी रहे है /

खैर,ये तो कुछ नही वर्ना अन्रगल बोल्ने कर्ने वालो ने तो प्यासा,मेरा नाम जोकेर को भी नही छोडा था,अप्ने समय मे/

गुरुदत्त और गीत्कार शेलेन्द्र को तो चल्ता भी कर दिया...ऐसे ना जाने कित्ने और भी अन्जाने होन्गे ही..
खैर साहब....कुल मिला कर बुरा लगा इत्ना blunt होना आप्का सो लिख दिया,
क्योन्की मुज़े नही लग्ता की अभी कोइ किसी को पूछ ले की ashok mehta और santosh sivan की technique मे २ basic difference बताओ तो जवाब मिल पायेगा!

या ashoka के treatment मे क्या unique था ??

खैर,...................

महेन said...

ए बी सी डी साहब या मोहतरमा!
आपकी टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा। आपने गीत के अलावा हर चीज़ पर टिप्पणी की है। यह अपने आप में ही बढ़िया मज़ाक है।
दूसरा बढ़िया मज़ाक यह कि आपने इतना साहस नहीं किया कि अपने असली अवतार में सामने आकर बात करते। यह पहले वाले से भी बढ़िया मज़ाक है। उम्मीद है आपने कम से कम गाना सुनने की ज़हमत तो उठाई होगी या शायद मलयालम आपके लिये सचमुच विदेशी भाषा है?

श्रेष्ठतम साधन से शायद आपका मतलब महान कलाकार शाहरुख़ ख़ान और करीना कपूर होगा और 20-30 करोड़ का बजट?

अशोक मेहता और संतोष सिवान की टेकनीक में अंतर बताने के लिये यह सही फ़ोरम नहीं है। दरअसल कबाड़खाना इस तरह की चर्चा के लिये सही नहीं है। अगर आप सचमुच इतने आहत हैं तो निवेदन है कि मेरे दूसरे ब्लॉग पर आएं जहाँ यह पोस्ट कॉपी की गई है। बाकी की बात वहीं की जाए।

abcd said...

mahenji,

usage of typical arrogant and challenging words easily found in any blog-flight(just because somebody doent agree with you) wont help in dragging me into an ego -fight.

you dont have that creative inclination(probably) which could have helped you to answer my queries for santosh sivan etc..

again cursing the platform for your personal inabilities help me remind of नाच ना जाने आन्गन तेडा /

and if you understand the technique to a certain level then it's GOOD for you.

यदी मेरा comment ज़्यादा तक्लीफ़्देह है तो बता दिजियेगा,ill remove it.
CHEERS !

महेन said...

1. Typical arrogant & challenging words?
2. Ego fight???
3. Don't have creative inclination???
4. Personal Inabilities???
5. Removing the comment???

I don't know who's ego fight it is.

I only said that you can comment further on my personal blog and mind you, my personal blog is also visible to everyone, so I am not trying to shy away from the arguement. It's just that I am only a co-author here, not a moderator.

I stick to what I said about Asoka. It was a stupid movie. Neither was the story historically correct, nor did the film takes you into that era. Actors didn't give the feeling of the characters they were into either. Direction was loose (It was Santosh Sivan and that's what I meant). As for Cinematography (Santosh Sivan again), it wasn't impressive either. You expect much from Santosh don't you? Especially when he is doing almost everything in the movie).

I know nothing about cinematography and perhaps wouldn't be able to tell the basic differences between Ashok Mehta and Santosh's technique, but should that stop me from saying I didn't like someone's work when I really didn't?
On the other hand you seem to know quite a bit. Mind sharing your knowledge?

Best
Mahen

abcd said...

"but should that stop me from saying I didn't like someone's work when I really didn't?"

no it should not stop you,and i hope it applies for me also for your post.

immaterial of my knowledge about cinematography,this post is your baby and you should have taken the Hygiene precautions before Delivering it.

and...this was my last registeration for the dislike of your post.

महेन said...

Thanks for bringing this to an end, but wait, let me do the honour with my last note.

1. It remains unexplained what was great about the movie Asoka (see even the name is not right).
2. Someone forgot to leave comment about the song I posted. (When I say no one is ready to translate the song, it means no one assures me of quality translation. There are enough people around to do a casual word to word translation.)

Thanks anyway,
Mahen