अपने देश अपने शहर को जितना प्यार निज़ार क़ब्बानी ने किया वह दुर्लभ है. अपने शहर दमिश्क की शान में दीखिए क्या कहते हैं उस्ताद -
दमिश्क का एक चन्द्रमा
ओ हरे ट्यूनीशिया, मैं एक आशिक़ की तरह आया हूं तुम तक
धरे हुए अपनी भवों पर एक ग़ुलाब और एक किताब
क्योंकि मैं हूं दमिश्क का बाशिन्दा जुनून है जिसका पेशा
जिसके गाने से औषधियां हरी हो जाती हैं
दमिश्क का एक चन्द्रमा यात्रा करता है मेरे ख़ून में
कोयलें ... और अनाज ... और गुम्बद
दमिश्क से शुरूआत करती है चमेली अपने गोरेपन की
और सुगन्धियां उसके इत्र से ख़ुशबूदार बनाती हैं अपने को
पानी शुरू होता है दमिश्क से ... क्योंकि जहां भी
तुम टिकाते हो अपना सिर एक धारा बहने लगती है
और कविता है अपने पंख फैलाती एक गौरैया
अश-शाम के ऊपर ... और समुद्री यात्री होता है कवि
मोहब्बत शुरू होती है दमिश्क से ... क्योंकि हमारे पुरखों ने
सौन्दर्य की इबादत की, उन्होंने उसे घोला और वे ख़ुद पिघल गए
दमिश्क से शुरू किया घोड़ों ने अपना सफ़र
और रकाबें कसी जाती हैं महान विजयों के लिए
दमिश्क से शुरू होती है अमरता ... और उसके साथ
बनी रहती है भाषा और सुरक्षित रहती हैं वंशावलियां
और दमिश्क प्रस्तुत करता है अरबवाद को उसका आकार
और इसकी धरती पर, आकार ग्रहण करते हैं युग.
(फ़ोटो - दमिश्क के आसमान में पूरा माहताब)
1 comment:
सबको अपने देश पर नाज़ हो।
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