Sunday, July 17, 2011

मैं रोशन करता हूं आने वाले युग को

निज़ार क़ब्बानी की कविता -

मैं शब्दों से फ़तह करता हूं संसार

मैं शब्दों से फ़तह करता हूं संसार
फ़तह करता हूं मातृभाषा,
क्रियाएं, संज्ञाएं, वाक्य-विन्यास
मैं चीज़ों के आरम्भ को हटा देता हूं
एक नई भाषा की मदद से
जिसके पास पानी का संगीत होता है और आग का सन्देसा
मैं रोशन करता हूं आने वाले युग को
और समय को थाम देता हूं तुम्हारी आंखों में
और मिटा देता हुं उस लकीर को
जो समय को अलग करती है
इस इकलौते पल से.

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