Monday, August 15, 2011

चाहे कोई मुझे ...


शम्मी कपूर नहीं रहे.

रामनगर शहर में अपने बचपन की एक याद लगातार आती रहती है. अमूमन बरसात के इन्हीं दिनों एक साइकिल चलाने वाला सात य दस या बारह दिन बिना रुके, बिना साइकिल से उतरे एक गोल में घूम घूम करता जाता था. उसके पास एक रेकॉर्ड प्लेयर और लाउडस्पीकर था जिस पर वह सिर्फ़ और सिर्फ़ शम्मी कपूर की फ़िल्मों के गीत बजाया करता था - "याहू" शब्द तभी से रामनगर के छोकरों में ख़ासा लोकप्रिय जुमला बन गया था.

मुझे उन की फ़िल्म राजकुमार की अच्छे से याद है - पहली फ़िल्म जिसके टिकट मैंने ब्लैक में ख़रीदे थे.

और कश्मीर की कली ...

और रानीखेत में एक संक्षिप्त रू-ब-रू मुलाक़ात ....

एक अच्छी पोस्ट लिखना चाहता हूं उन पर फ़ुरसत में ...

अभी उन्हें श्रद्धांजलि और आप के वास्ते उन का एक इन्टरव्यू -


2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

शम्मी जी मेरे पसंदीदा कलाकार थे...उनकी शायद ही कोई फिल्म देखने से छोड़ी हो...आज सुबह से उन्हीं की फिल्मों के गीत सुन रहा हूँ...सच "तुम सा नहीं देखा"

नीरज

प्रवीण पाण्डेय said...

हार्दिक श्रद्धांजलि।