Tuesday, October 11, 2011

कोई बर्फ का तूफ़ान उड़ाता आया है देखने कि मेरा क्या हुआ


नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किए गए स्वीडिश कवि टॉमस ट्रांसट्रोमर पर एक लम्बी पोस्ट लगाने का मन था/ है पर घर की अनिवार्य व्यस्तताओं ने हाथ थामा हुआ है. और व्यस्तता का यह सिलसिला अभी शायद दो-तीन सप्ताह और खिंचेगा.

फ़िलहाल जोधपुर से हमारे कबाड़ी संजय व्यास ने कवि की एक कविता का अनुवाद कर भेजा है. उम्दा अनुवाद है और कविता की विषयवस्तु टिपिकल ट्रांसट्रोमर वाली. पेश है -


एकाकीपन-१

तोमास ट्रांसट्रोमर

(अनुवाद- संजय व्यास)

फरवरी की एक शाम यहाँ मैं मृत्यु के एकदम पास आ गया था
कार फिसल कर बर्फ पर एक ओर आ गयी थी
सड़क पर गलत दिशा में. सामने से आती हुईं कारें ...
नज़दीकतर होतीं ... उनकी रोशनियाँ .

मेरा यश, स्त्रियाँ, काम
सब मुक्त हो कर छूट गए ख़ामोश कहीं पीछे
दूर, बहुत दूर. मैं परिचयहीन था
एक लड़के की तरह घिरा हुआ खेल के मैदान में दुश्मनों से जैसे.


आते हुए ट्रेफिक के विशाल प्रकाश पुंज
मुझ पर चौंध मारते और मैं
स्टेयरिंग से लटका था अंडे की सफ़ेदी की तरह
तैरते पारदर्शी आतंक में.
विस्फारित हो गए थे वे क्षण
उनमें बनता गया अवकाश
वे फ़ैल गए चिकित्सालयों जितने बड़े.


कि जैसे कुचले जाने से पहले
आप यहाँ ठहर कर
सांस ले सकते थे कुछ देर.

और तब कुछ पकड़ में आया रेत के एक कण का सहारा
या हवा का अद्भुत झोंका कार बंधन मुक्त हो
बड़ी दक्षता से आप ही जैसे सड़क के उस ओर सरसराती चली गयी.
एक खम्भा टक्कर खाकर टूटा एक तेज़ आवाज़
और गया उछलता अँधेरे में कहीं.

फिर..निस्तब्धता. मैं अपने सीट बेल्ट में
पीछे झुक कर बैठा था और देख रहा था कि
कोई बर्फ का तूफ़ान उड़ाता आया है देखने कि
मेरा क्या हुआ.