Monday, October 17, 2011

मैं मुरली मनोहर मंजुल बोल रहा हूँ...(२)

(पिछली कड़ी को यहाँ देखें)

क्रिकेट कमेंटरी करना मेरे लिए परम आत्मिक सुख का सोपान रहा. सुनने वालों ने मेरी शैली, स्वर गति और खेल ज्ञान को हाथों हाथ लिया.जो प्यार और पहचान सर्वत्र मुझे नसीब हुई, कमेंटरी छोड़ने के बाद भी आज तक मुझे सुलभ है.

सब कुछ होते हुए भी कमेंटरी फूलों की सेज नहीं थी.यह तो मेरा दिल ही जानता है, वहाँ टिके रहने के लिए मुझे कितने पक्षपात और निरुत्साह का हर मोड़ मुकाबला करना पड़ा.जलन और ईर्ष्या व्यक्ति को कहीं का नहीं रखती.वे यथाशक्ति चुपचाप अपना मार्ग प्रशस्त करने वालों की टांग खींचे बिना नहीं रहते.क्रिकेट कमेंटरी में वाचालता नहीं वाक्पटुता की ज़रूरत होती है.कुछ यही हुआ मेरे साथ.क्योंकि क्रिकेट कमेंटरी करने वाला रेडियो का मैं पहला नियमित सरकारी सेवक था इसलिए यह बात मेरे कई मुंशी-मित्रों और अधिकारियों को रास नहीं आई.आकाशवाणी महानिदेशालय की स्पोर्ट्स सेल पर वे लोग दबाव बनाते रहे कि मंजुल को कम से कम मैच मिले.क्रिकेट और उसकी कमेंटरी एक नशे की तरह मुझ पर सवार थे.दिल्ली की बन्दर बाँट मुझे विचलित करती रही.१९७८-१९८२ में भारतीय टीम के साथ पाकिस्तान चला तो गया मगर मुझे बीच दौरे से वापस बुलाने की खिचड़ी दिल्ली में पकती रही.अगर तत्कालीन सूचना मंत्री श्री एन. के. पी. साल्वे, अशोक गहलोत और पुरषोत्तम रूंगटा ने दखल न दिया होता तो दिल्ली के मुंशी-मित्र मनचाही करके छोड़ते.वैसे दो बार ऐन वक्त पर मेरा नाम इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के दौरे से हटाया जा चुका था.हालांकि मेरी अंतर्पीड़ा को समझ कर पिताजी ने सौगंध दिलवाई, लेकिन क्रिकेट के प्रेम को मैं छोड़ न पाया.

और तो और १९८७ में विश्व कप से ठीक पहले उदयपुर में कार्यरत होते हुए मैंने क्रिकेट कमेंटरी कला पर पहली हिंदी पुस्तक लिखी आँखों देखा हाल. उसे भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार तृतीय मिला. सभी ने बधाई दी. लेकिन मैं अपने महानिदेशालय से पीठ थपथपाने की बस प्रतीक्षा करता रहा.हम दो-तीन लोगों ने जिस लगन से हिंदी कमेंटरी को लोकप्रियता के रस्ते पर डाला उसका लाभ रेडियो ने तो भरपूर उठाया मगर जंगल में नाचते उस मोर को दिल्ली ने कोई शाबाशी नहीं दी.(जारी)

1 comment:

नीरज गोस्वामी said...

मंजुल जी क्या हुआ गर आपके सरकारी विभाग ने आपको मान्यता नहीं दी...आपके हमारे जैसे सैंकड़ों हज़ारों प्रशंशक हैं जो कभी सिर्फ आपकी कमेंट्री सुनने के लिए ही रेडिओ सुना करते थे...जब जब हिंदी कमेंट्री की बात होगी वो आपके नाम की चर्चा के बिना अधूरी रहेगी...आपने चाहे मुंशियों अपने आकाओं को खुश न किया हो लेकिन अपने श्रोताओं के दिलों पर राज़ किया है...

नीरज