महान कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की इस कविता को आपसे साझा कर रहा हूँ.याद ही होगा कि इस ठिकाने पर आप इनकी कई कवितायेँ पहले भी पढ़ चुके हैं.
पहली नज़र का प्यार- विस्वावा शिम्बोर्स्का
उन दोनों को विश्वास है कि
एक सहसा भावावेग ने ही
जोड़ा हैं उन्हें
परस्पर
खूबसूरत लगती है ऐसी अवश्यंभाविता
पर
इसमें सम्भाव्यता
और भी सुंदर है.
अब चूँकि वे पहले कभी नहीं मिले
तो वे मानतें हैं तयशुदा तौर पर
कि उनके बीच कभी कुछ नहीं था
पर क्या कहेंगे वो -
वे गलियां, सीढ़ीयां और गलियारे
जहां से वे
गुज़रे होंगे
अनगिन बार.
मैं उनसे पूछना चाहती हूँ
कि क्या उन्हें याद है
किसी घूमते दरवाज़े पर क्षण भर हुआ सामना?
भीड़ के बीच शायद बुदबुदाया गया 'सॉरी'?
फोन के रिसीवर में सुना गया 'रौंग नंबर'?
पर मैं जानती हूँ उत्तर
कि
नहीं, उन्हें कुछ भी याद नहीं.
उन्हें जानकार आश्चर्य होगा कि
अरसे से
अवसर उनके साथ खेल रहा है
जबकि तैयार नहीं वो
कि बदल सके उनके भाग्य में,
वो उन्हें नज़दीक लाया
दूर ले गया
रास्ते में आया
रोकते हंसी को बमुश्किल
दूर कूद गया
बहुत से निशान और इशारे थे
भले ही जिन्हें वे पढ़ न सके अब तक
शायद तीन साल पहले या
पिछले मंगलवार ही
कोई एक पत्ता उड़ा था
एक से
दूसरे के कंधे तक?
कोई चीज जो गिरी
और फिर उठा ली गई
कौन जानता है
शायद वो गेंद ही
जो गुम गई थी
उनके बचपन के झुरमुट में?
दरवाजे की घुन्डियाँ और घंटियाँ थीं
जहां एक का स्पर्श ढकता था
दूसरे के स्पर्श को
लगेज रूम में
सूटकेस की जांच के वक्त
खड़े एक दूसरे के पास
एक रात. शायद
देखा गया एक ही सपना
जो सुबह तक धुंधला गया.
हर शुरूआत
आखिरकार
किसी का अगला भाग ही होती है
और घटनाओं की किताब
हमेशा
अधबीच से ही
खुली होती है.
7 comments:
हर शुरूआत
आखिरकार
किसी का अगला भाग ही होती है
और घटनाओं की किताब
हमेशा
अधबीच से ही
खुली होती है...खूबसूरत!
बहुत ही सुंदर कविता है, अनुवाद भी।
शिम्बोर्स्का मेरी प्रिय कवियत्री हैं. ये कविता न जाने कितनी बार पढ़ी है.... शुक्रिया संजय जी शिम्बोर्स्का फिर से...
लाजवाब !
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
लाजबाब!
अद्भुत भाव
सुन्दर काव्य
अनुपम अनुवाद
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