Monday, December 5, 2011

मशहूरियत किसी को नहीं बख्शती

अन्ना अख़्मातोवा (जून ११, १८८९ - मार्च ५, १९६६) की कवितायें आप 'कबाड़ख़ाना'  और 'कर्मनाशा' पर पहले भी कई बार पढ़ चुके हैं। रूसी साहित्य की  इस  मशहूर हस्ती का  जीवन और लेखन विविधवर्णी छवियों का एक कोलाज है। उनका काव्य बार - बार अपनी ओर खींचता है। आइए आज  साझा करते हैं यह कविता :



अन्ना अख़्मातोवा  की कविता
और तुम , मेरे दोस्तो
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह) )

और तुम , मेरे दोस्तो
जिन्हें भेज दिया गया है बहुत दूर 
और यहाँ छोड़ दिया गया है मुझे
दु:खी होने के लिए
तुम्हारी याद में रोने के लिए।
तुम्हारी स्मृति जमे विलो की तरह नहीं
लगता है मुझे छोड़ दिया गया है
दुनिया के तमाम नामों पर रोने के लिए
जो सो रहे हैं।

उनके नाम क्या हैं?

मैं तेज आवाज के साथ पलट देती हूँ कैलेन्डर
तुम्हारे झुके हुए घुटनों पर
कुर्बान है मेरे हृदय का सारा लहू
लेनिनग्राद के तमाम भद्रलोग
एक जैसी कतारों में कर रहे हैं कदमताल
- क्या जीवित , क्या मृतप्राय

मशहूरियत किसी को नहीं बख्शती
सभी को कर देती है एक समान।