Sunday, December 25, 2011

सोना लेने म्हारे पी गए, अरी मोरा सूना कर गए देस


भाई इकबाल अभिमन्यु ने कुछ दिन पहले आपको मशहूर पाकिस्तानी क़व्वाल फरीद अयाज़ की आवाज़ में कबीरदास जी की शानदार पेशकश सुनवाई थी. उन्हीं फरीद आवाज़ साहेब से आज सुनिए अतिविख्यात रचना पधारो म्हारे देस

5 comments:

Ek ziddi dhun said...

अशोक भाई, मजा आ गया. इकबाल अभिमन्यु वाली पोस्ट भी दोबारा सुनी. मोटे तौर पर जो माहौल बनाया गया है, उससे लगता है कि दोनों मुल्कों में बस मुख्तलिफ-मुख्तलिफ ही हालात हैं लेकिन मिले-जूले सूत्र इतने ज्यादा बिखरे हुए हैं कि हैरत होती है. फोल्क में तो और भी ज्यादा. कुछ बरस पहले रेशमा करनाल आईं थीं, मैं उन्हें पंजाब मूल क ई समझाता था. बातचीत होने लगी, मैंने अपने साथ बैठे प्रोफ़ेसर अबरोल से उनका परिचय किया. अबरोल के राजस्थानी मूल का जिक्र आते ही भाव-विभोर हो गईं, आँखें भर आईं और अबरोल को गले लगा लिया. बोलीं अपने मुल्क का भाई मिल गया. आओ पधारो म्हारो देश सुनकर यूँ ही याद आ गया. धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय said...

अहा, सुन्दर स्वर।

Rahul Singh said...

बहुत खूब. हम अभी तक लांगा-मांगणियारों से ही सुनते रहे थे यह.

Vandana Ramasingh said...

कला और साहित्य ही तो सीमाओं से परे एक अलग जहाँ बनाते हैं.. शुक्रिया इस पोस्ट के लिये

अजेय said...

दोनो वीडिओ सुने. लाजबाव गायान. काव्य को जी कर गाना इसे कहते हैं. लाजवाब. संगीत की जब बात आती है , मुझे पाकिस्तान से ईर्ष्या होती है.