सत्तर की दहाई के शुरुआती सालों में मनाली के नज़दीक भारत की सरहदों पर बन रही सडकों पर मज़दूरी कर रहे एक गरीब तिब्बती शरणार्थी परिवार में जन्मे तेनजिन की तीन पुस्तकें छाप चुकी हैं. इनमें दो कविता-संग्रह हैं और एक उनके लेखों का संग्रह. अपना पहला कविता संग्रह छपने के लिए उन्होंने अपने सहपाठियों से पैसे उधार मांगे थे - तब वे बम्बई में अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. कर रहे थे.
१९९९ में तेनजिन ने फ्रेंड्स ऑफ तिब्बत (इण्डिया) की सदस्यता ग्रहण की. तब से अब तक वे इस संगठन से जुड़े हैं और वर्तमान में महासचिव हैं. २००२ में उन्होंने बम्बई के ओबेरॉय टावर्स में तिब्बती झंडा और एक बैनर फहराया था जिस पर लिखा था - "तिब्बत को आजाद करो". भारत का दौरा कर रहे चीनी राष्ट्रपति उसी इमारत में भारत के बड़े व्यापारियों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे. इस घटना ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इस कारनामे की तरफ खींचा और भारतीय पुलिस अफसरान ने जेल में उन्हें अपने अधिकारों की पैरवी करने की हिम्मत रखने की दाद भी दी.
आज उनकी एक और कविता -
निर्वासन का घर
चू रही थी हमारी खपरैलों वाली छत
और चार दीवारें ढह जाने की धमकी दे रही थीं
लेकिन हमें बहुत जल्द लौट जाना था अपने घर.
हमने अपने घरों के बाहर
पपीते उगाये,
बगीचे में मिर्चें,
और बाड़ों के वास्ते चंगमा,
तब गौशालों की फूंस-ढंकी छत से लुढ़कते आए कद्दू
नांदों से लड़खड़ाते निकले बछड़े,
छत पर घास
फलियों में कल्ले फूटे
और बेलें दीवारों पर चढ़ने लगीं,
खिड़की से होकर रेंगते आने लगे मनीप्लांट,
ऐसा लगता है हमारे घरों की जड़ें उग आयी हों.
बाड़ें अब बदल चुकी हैं जंगल में.
अब मैं कैसे बताऊँ अपने बच्चों को
कि कहाँ से आये थे हम?
(चंगमा - बेंत जैसा लचीले तने वाला एक पेड़)
4 comments:
बहुत सुन्दर कविता. चंग्मा लाहुल की कुछ बोलियों मे ब्यूँस ( Willow/ भिसा ) को कहते हैं . इस के अन्य पर्याय वाची हैं -- बोर्चा, बेलि, षेन इत्यादि.
बहुत सुन्दर कविता. चंग्मा लाहुल की कुछ बोलियों मे ब्यूँस ( Willow/ भिसा ) को कहते हैं . इस के अन्य पर्याय वाची हैं -- बोर्चा, बेलि, षेन इत्यादि.
कहा था घर ने इतना, जाओ प्यारे, लौट पर आना,
शब्द पहले सुन सका, वह काल निर्मम था।
तिब्बत की पीड़ा को स्वर देने के लिए धन्यवाद । चीन कुत्ता है ।
Post a Comment