Monday, January 30, 2012

नए तिब्बत की कविता - ९

तिब्बती कविताओं की श्रंखला में तेनजिन त्सुंदे की यह आख़िरी कविता है. आशा है इसने आप के सम्मुख तिब्बती शरणार्थियों के जीवन और संघर्ष से सम्बंधित कुछ नए आयाम खोले होंगे. कुछ और तिब्बती कविताएँ बहुत जल्दी -


आतंकवादी

मैं एक आतंकवादी हूँ
मुझे हत्या करने में आनंद आता है.

मेरे सींग हैं
दो विषैले दांत
और ड्रैगनफ्लाई की पूंछ.

अपने घर से भगाया हुआ मैं
डर के मारे छिपा हुआ
बचाता अपना जीवन
दरवाजे भेड़े जाते मेरे चेहरे पर.

लगातार लगातार नहीं मिलता न्याय
धैर्य का इम्तेहान लिया जाता है
टेलीविजन पर, तोड़ा जाता हुआ
एक खामोश बहुमत के सामने
दीवार से सटाया गया,
उस मृत छोर से
लौट कर आया हूँ मैं,

मैं हूँ वह अपमान
जिसे तुमने निगला था
चपटी नाक के साथ.

मैं हूँ वह शर्म
जिसे दफनाया था तुमने अँधेरे में.

मैं आतंकवादी हूँ
गोली मार गिरा दो मुझे

डर और कायरता
मैं छोड़ आया था
घटी में
मिमियाती बिल्लियों
और जीभ लपलपाते कुत्तों के बीच.

मैं अविवाहित हूँ
खोने को
कुछ नहीं मेरे पास.

मैं बन्दूक की गोली हूँ
मैं कुछ नहीं सोचता.

टीन के खोल से
मैं झपटता हूँ
उस दो-सेकेण्ड के जीवन के रोमांच के लिए
और मर जाता हूँ मृतकों के साथ.

मैं जीवन हूँ
जिसे तुम छोड़ आए थे पीछे.

4 comments:

विवेक रस्तोगी said...

बेहतरीन मनोभाव

प्रवीण पाण्डेय said...

मन की पीड़ा क्या न बना दे...

राजेश उत्‍साही said...

अवसाद,अफसोस और आक्रोश सब कुछ है इस कविता में। शायद परिवेश और परिस्थिति से जन्‍मा है।

मुनीश ( munish ) said...

अच्छा लगा ।