(पिछली किस्त से आगे)
माफ करना हे पिता - ७
शंभू राणा
एक रोज सीढ़ियों से लुढ़क कर मैं अपना माथा फुड़वा बैठा। लोगों ने घाव में चीनी चरस ठूँस कर कपड़ा बाँध दिया। कुछ दिन बाद घाव पक कर रिसने लगा, उसमें मवाद पड़ गया। पिता एक दिन मुझे अल्मोड़ा ले आये। जहाँ दो हफ्ते तक घाव की मरहम-पट्टी होती रही और ढेर सारे पेंसलीन के इन्जेक्शन लगे। पिता मुझे साथ लेकर दफ्तर में रहने लगे। कहीं से एक स्टोव ले आये, अटक-बिटक के लिये सरकारी हीटर था ही। भगौने का ढक्कन तवा, उल्टी थाली चकला, गिलास बेलन बन गया। बैंच-टेबलें खटिया और पर्दे-कुशन बिस्तरा। कुछ ही समय बाद पास ही में किराये की कोठरी (फिर कोठरी) मिल गयी। मेरा दाखिला स्कूल में करवा दिया गया। यह सब सन 81-82 की बात है।
इसके बाद दो-चार बार गाँव जाना हुआ, पर वहाँ मेरा मन नहीं लगा। मुझे शहर रास आने लगा था। आखिरी बार गाँव मुझे यज्ञोपवीत संस्कार के लिये ले जाया गया। यह तब की बात है जब नवाज शरीफ पहली बार (जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान के) प्रधानमंत्री बने थे। गाँव में रहने का अनुभव बस तीनेक साल का है।
पिता का गाँव आना-जाना लगा रहा। शायद उन्होंने जादू टोना भी एकाध बार करवाया कि मैं गाँव नहीं जाता। पिता ने फिर से चार संतानें पैदा कीं। पहली मरी हुई, बांकी तीन स्वस्थ हैं पर शायद प्रसन्न न हों। उन्होंने संपत्ति के रूप में अपनी अंतिम रचना रिटायरमेंट के बाद प्रस्तुत की। गोया रिटायर कर दिये जाने से खुश न हों और अपनी रचनात्मक क्षमता साबित कर उन्होंने सरकार को मुँहतोड़ जवाब दिया हो।
रिटायर होने के ठीक अगले दिन उन्होंने सड़क में बैठ कर लॉटरी बेचना शुरू कर दिया। ऐसा करने की हार्दिक इच्छा उनकी काफी समय से थी। उनका खयाल था कि जिस दिन वो लॉटरी बेचने लगेंगे उस दिन सब (दूसरे लॉटरी वाले) अपना बिस्तरा गोल कर लेंगे। और कि गुरू, हमारे चारों ओर लोग यूं उमड़ पड़ेंगे जैसे गुड़ में मक्खियाँ लगती हैं। उनका खयाल था कि वो इस धंधे में लखपति…. शायद करोड़पति भी बन सकते हैं। उनका कहना था कि हम यहाँ से अपने गाँव तक एक पुल बनायेंगे। वगैरा-वगैरा। हाँ, तो लोग उनके इर्द-गिर्द खूब मँडराये। लोगों ने दो-एक महीने में ही गुड़ में से ‘ड़’ चूस लिया। ‘गु’ छोड़ दिया। अब क्योंकि ‘ड़’ के बिना ‘गु’ अकेला मीठा नहीं होता, इसलिये मक्खियों ने दूसरे बाग-बगीचों का रुख किया। खेल खतम, पैसा हजम। बच्चा लोग बजाओ…..ताली बजाने को कोई मौजूद नहीं था।
उन जैसा स्वप्न विश्लेषक शायद ही कोई दूसरा हो। एक नम्बर वाली लॉटरी के मामले में। मसलन वो कहेंगे कि गुरू हमने कल रात सपने में गाय को सीढ़ी चढ़ते देखा, हमें उसकी चार टाँगें दिखायी दीं। तो चढ़ने का बना चव्वा और चार टाँगों का भी चव्वा ही बनता है। इन दोनों को जोड़ कर बना अट्ठा। मतलब कि आज चव्वा और अट्ठा पकड़ लो और सपोर्ट में रख लो दुक्की। कई दिनों से बंद पड़ी है दुक्की। सपने में अगर शादीशुदा औरत दिखे तो मतलब कि आज जीरो खुलेगा, क्योंकि औरतें बिन्दी लगाती हैं। कुँवारी लड़की का नम्बर अलग बनता था और अगर प्रश्नकर्ता सपने में महिला के साथ कुछ ऐसी-वैसी हरकत कर रहा हो तो उससे कुछ और नम्बर निकलता था। मैं अधिकांश प्रतीकों को भूल गया हूँ, जो कि अद्भुत थे। सपनों से नम्बर निकालने के पीछे जो कारण और तर्क थे वो कल्पनातीत थे। मेरे खयाल में यह सट्टे के तौरतरीके हैं और पिता ने मैदानी इलाकों में रहते हुए सट्टा न खेला हो, ऐसी गलती उनसे कैसे हो सकती थी ?
एक बार किसी ने आकर उन्हें बताया कि मैंने कल रात खुद को हाथी पर बैठे देखा। पिता ने इसका मतलब उन्हें बताया कि आज अट्ठा पड़ेगा। दो-एक दिन बाद वही साहब कहने लगे कि मैं जमीन में खड़ा हूँ। हाथी मेरे बगल में खड़ा है। पिता ने कहा कि आज आप चव्वा पकड़ लें। प्रश्नकर्ता ने कहा ऐसा कैसे ? जवाब मिला – अब क्या जिन्दगी भर हाथी में ही बैठे रहेंगे ? परसों हाथी में थे तो अट्ठा खुला, आज हाथी से उतर गये हैं तो उसका जस्ट आधा कर लीजिये। कौन सा कठिन है।
(जारी)
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