Sunday, February 19, 2012

जहां हिरोशिमा था वहाँ फिर से हिरोशिमा है


वास्तविकता मांग करती है

विस्वावा शिम्बोर्स्का

वास्तविकता मांग करती है
कि हम इस बात का भी ज़िक्र करें -
जीवन अनवरत चलता रहता है.
वह चल रहा है कैने में बोरोडीनो में
कोसोवो पोल्ये में और गुएर्निका में.

जेरिको के छोटे चौराहे पर
एक पेट्रोल पम्प है
और विला होरा के पार्क की बेंचों पर
गीला पेंट
पर्ल हार्बर और हेस्टिंग्ज़ के बीच
चिठ्ठियों का आना जाना लगा रहता है,
शेरोनी के सिंह की आँखों के तले
गुजरती है एक वैन,
और वेर्डून के नज़दीक खिले हुए बगीचे
अनदेखी नहीं कर सकते
आसपास घट रही चीज़ों की.

हर चीज इतनी सारी है
कि बहुत बढ़िया से छिप जाता है "कुछ नहीं"
एक्टियम पर लंगर डाले खड़ी नावों से
उडेला जाता है संगीत
और उन के धूपदार डेकों पर नृत्यरत जोड़े होते हैं.

इतना सारा चल रहा है
कि यह एक बार दुबारा हो रहा होना चाहिए.
जहां अब एक भी पत्थर नहीं खड़ा है
वहाँ आप देखते हैं आइसक्रीम बेचने वाले को
जिस पर बच्चों ने धावा बोला हुआ है.
जहां हिरोशिमा था,
वहाँ फिर से हिरोशिमा है
और वहां रोज़मर्रा इस्तेमाल की चीज़ों का
उत्पादन किया जाता है.

भयावहता से भरा यह संसार अब भी आकर्षक है -
सुबहें, जिन्हें होता देखने को
जागना अब भी इस लायक है.

मासेजोविस के खेतों में
घास हरी है
और भरी हुई है ओस से
घास के साथ अक्सर ऐसा होता है

संभवतः सभी मैदान युद्ध के मैदान होते हैं
जिन्हें हम याद रखते हैं वो
और जिन्हें भुला दिया जाता है वो भी -
भोजपत्र के जंगल और देवदार के जंगल,
बर्फ और बालू, दिपदिपाते दलदल
और पराजय के संकरे दर्रे,
जहाँ अभी फिलहाल, ज़रूरत पड़ने पर आप को
भयाक्रांत हो कर छिपना होगा,
आप किसी झाड़ी के पीछे जाकर फारिग हो सकते हैं.

क्या सीख मिलती है इस से हमें?
शायद कुछ नहीं.
केवल खून बहता है
और जल्दी सूख जाता है
और
हमेशा की तरह
-कुछ नदियां,
कुछ बादल.

त्रासद पहाड़ी दर्रों पर
हवा उड़ा देती है
किसी बेपरवाह सर पर से टोपी
और हम कुछ नहीं कर सकते
इस बात पर ठहाका लगाने के सिवा.

3 comments:

AWAJ Pratibha Chauhan said...

बहुत बढ़िया,बहुत ही प्रासंगिक कविता है।

AWAJ Pratibha Chauhan said...

बहुत बढ़िया, बहुत ही प्रासंगिक कविता है।

AWAJ Pratibha Chauhan said...

बहुत बढ़िया,बहुत ही प्रासंगिक कविता है।