(पिछली किस्त से आगे)
माफ करना हे पिता - १०
शंभू राणा
उनका दावा था कि अगर कोई उन्हें सात फाउंटेन पैनों में सात रंग की स्याहियाँ भर कर ला दे तो वे असल जैसा दिखने वाला नकली नोट बना सकते हैं। उनका इतना सा काम किसी ने करके नहीं दिया और भारतीय अर्थव्यवस्था चौपट होने से बच गयी। इस नेक काम में मैंने भी सहयोग नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कहा- देखना गुरू, अब अटलजी मैरिज कर लेंगे। सैटल हो गये हैं न।
पिता जैसे थे मैंने ठीक वैसे ही कलम से पेंट कर दिये। न मैंने उनका मेकअप किया, न उन पर कीचड़ उछाला। उन्हें याद करने के बहाने माँ, जिसकी याद मुझे जरा कम ही आती है, को भी याद कर लिया और खुद अपने अतीत की भी गर्द झड़ गयी। बात से बात निकलती चली गयी, डर है कहीं रौ में कुछ गैरजरूरी न कह गया होऊँ।
मेरे लिये पिता की दो छोटी सी ख्वाहिशें थीं- एक तो मुझे किसी तरह चार छः बोतल ग्लूकोज चढ़ जाये। जिससे मैं थोड़ मोटा हो जाऊँ। मेरा दुबलापन उनके अनुसार सूखा रोग का लक्षण था। ग्लूकोज चढ़ने से मैं बकौल उनके ‘बम्म’ हो जाता। और दूसरी ख्वाहिश थी कि अनाथालय से मेरी शादी हो जाये। जाहिर सी बात है कि मैंने हमेशा की तरह यहाँ भी उन्हें सहयोग नहीं किया और नतीजतन इतना दुबला हूँ कि मेरी उम्र मेरे वजन को पीछे छोड़ चुकी है।
(समाप्त)
3 comments:
पूरी 10 किस्ते एक साथ पढ़ गया! एक इमानदार अभिव्यक्ति।
सारी किस्तें पढ़ीं। आशीष जी की बात से सहमत हूं, इसमें कोई बनावट नहीं है।
सब किस्तें पढीं।अच्छा लगा। आप जब किस्तों में पोस्ट करते हैं तो आगे-पीछे की किस्तें लिंक से जोड़ दिया करें तो सुविधा होगी।
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