Sunday, February 5, 2012

मैंने सपना देखा कि धरती का दिल बड़ा है


मेरे पास मर जाने को अभिशप्त आदमी की बुद्धिमत्ता है

महमूद दरवेश

मेरे पास मर जाने को अभिशप्त आदमी की बुद्धिमत्ता है
मेरे पास किसी चीज़ पर अधिकार नहीं सो कोई भी चीज़ मुझ पर अधिकार नहीं कर सकती
और मैंने अपने ख़ून से लिखी है अपनी वसीयत:
"ओ मेरे गीत के बाशिन्दो: पानी पर भरोसा रखो"
और मैं सोता हूं आने वाले अपने कल से बिंधा हुआ और ...
मैंने सपना देखा कि धरती का दिल बड़ा है
उसके नक़्शे से,
उसके आईनों और फांसी के मेरे तख़्तों से
अधिक स्पष्ट.
मैं एक सफ़ेद बादल में खो गया जो मुझे ऊपर उठा ले गया
जैसे कि मैं कोई हूपी था
और ख़ुद हवा मेरे पंख.
भोर के वक़्त, रात के पहरुए ने
मुझे मेरे सपने, मेरी भाषा से जगाया:
तुम जियोगे एक और मौत
सो सुधार लो अपनी आख़िरी वसीयत,
फांसी दिए जाने का वक़्त टाल दिया गया है दुबारा से.
मैंने पूछा: कब तक के लिए?
उसने कहा: थोड़ा और मरने तक इन्तज़ार करो.
मैंने कहा: "मेरे पास किसी चीज़ पर अधिकार नहीं सो कोई भी चीज़ मुझ पर अधिकार नहीं कर सकती
और मैंने अपने ख़ून से लिखी है अपनी वसीयत:
"ओ मेरे गीत के बाशिन्दो: पानी पर भरोसा रखो"

2 comments:

avanti singh said...

bahut hi sundar rachna hai mahmud ji ki ....achcha lga padhkr...

Ramakant Singh said...

भोर के वक़्त, रात के पहरुए ने
मुझे मेरे सपने, मेरी भाषा से जगाया:
तुम जियोगे एक और मौत
सो सुधार लो अपनी आख़िरी वसीयत,
lines from the bottom of the heart.