१९६९ में बेलग्रेड में जन्मे गोरान तोमसेविच एक बेहतरीन युद्ध-पत्रकार हैं. गोरान ने स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर १९९६ में रॉयटर्स के साथ अपने करियर का आगाज़ किया. इराक संकट के समय वे बग़दाद में थे जबकि अब वे मिश्र में वरिष्ठ फोटोजर्नलिस्ट के पड़ पर कार्यरत हैं. गोरान को २००३ और २००५ में रॉयटर्स फोटोग्राफर ऑफ थे इयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है.
गोरान की खींची यह तस्वीर काहिरा में २८ जनवरी २०११ को ली गयी थी. इस में एक प्रदर्शन के दौरान एक विरोधी जलती हुई बैरीकेडिंग के सामने खड़ा है.
तस्वीर की पृष्ठभूमि बताते हुए गोरान कहते हैं – “मैं रेफरेंडम की खबर कवर करने दक्षिणी सूडान गया हुआ था. वहाँ जा कर मुझे पता लगा कि मिश्र में विरोध-प्रदर्शन होने वाले हैं. मुझे लगा कि काफी संकट का समय आनेको है सो मैं मिश्र लौट गया. मैं सुबह आठ बजे घर पहुंचा. सामान वहां रखकर मैं सीधा दफ्तर गया. दोपहर बाद काहिरा में झडपें होना शुरू हो गईं. लोग चीख-चिल्ला रहे थे और पुलिस सडको पर आ चुकी थी. विरोधियों और दंगा पुलिस के अलावा भारी संख्या में सादी वर्दी वाले पुलिसिये भी थे.
इन सादी वर्दी वालों ने लोगों को खदेड़ना, लतियाना और पीटना शुरू कर दिया. मेरे पास फोटो खींचने को बहुत समय नहीं था. मैंने बहुत से सादी वर्दी वाले पुलिसियों को सैनिकों की तरह कतार में खड़ा देखा. सड़कों पर आम नागरिकों के साथ बाकायदा जंग जारी थी. अगले रोज हमें एक बड़े विरोध-प्रदर्शन के होने की जानकारी थी सो मैं अपना साज़-ओ-सामान लेकर मुख्य शहर में जा पहुंचा. हम कुछेक बसासतों में गए पर हमने पाया कि लोग संकरी गलियों से होकर शहर के केन्द्र की तरफ जा रहे थे. कुछ ही पलों में हमारे सामने झडपें होना शुरू हो गईं. पुलिस और नागरिक बाकायदा युद्धरत थे.”
2 comments:
पूरे अध्याय कहती तस्वीर
युद्ध, दंगे-फसाद में कभी किसी की जीत नहीं होती। तस्वीर युद्ध की भयावहता को प्रदर्शित करती है।
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