रूसी कवयित्री मारीना
स्वेतायेवा की एक कविता –
अनिद्रा
अनिद्रा की एक रात के बाद
और भी कमज़ोर हो जाती है देह,
और भी प्यारी, लेकिन न
तुम्हारी होने को न किसी और की,
किसी देवदूत की तरह टहलते
हो तुम, मुस्कराते लोगों को देख
और धीमी नसों में, कराहें
भरा करते है तीर.
अनिद्रा के बाद, ताकत खत्म
हो जाती है बांहों की और वे झूल जाती हैं
दोस्तों और दुश्मनों से बेज़ार
हो जाते हो तुम.
हरेक आकस्मिक स्वर में
उभरता है एक समूचा इन्द्रधनुष,
और सर्दियों में पाला पड़े फ्लोरेंस
की सी महक आती है.
सुंदर चमकते हैं होंठ और डूबी हुई आँखों को
छायाएं लगती हैं सुनहरी और हल्की. शाम के धुंधले आसमानों ने
रोशन किया है इस तस्वीर को, और काली रात में से
सिर्फ एक चीज़ होती जाती है और और गहरी- हमारी आँखें.
1 comment:
अद्भुत, अनुपम भाव..
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