(पिछली किस्त से जारी)
घर से भेजा जाता कि पांच लीटर मिट्टी का तेल ले आओ. तेल साढ़े चार ही लीटर लाया जाता. ढाई रूपये की बचत - पिक्चर का जुगाड. सबसे सस्ती क्लास का टिकट और मध्यांतर में चार आने की चीज़. उन्हीं दिनों एक तथाकथित अनुभवी ने बताया कि पिक्चर दूर से अच्छी दिखती है और रामलीला नज़दीक से. पर दूर यानी बालकनी से देखते कैसे? वह तो हमारे लिए दिल्ली से भी ज्यादा दूर थी. छुटभय्ये राजनेता के लिए जिस तरह विधानसभा संसद होती है वैसी ही हमारे लिए बालकनी और सेकेण्ड क्लास थे. यह दूर-नज़दीक वाली तो उसकी बात खैर ठीक थी, मगर इसके साथ ही उसने एक बड़ी जोर की गप्प हांकी जो उस वक़्त हमारी कनपटियों में खून बजा देने के लिए काफी थी. गप सुनिए - बाथरूम में मुसलमान औरतें नंगी होकर नहाती हैं. उस वक़्त दिमाग ने नंगी शब्द के अलावा कुछ नहीं सोचा.
एक बार पिताजी ने किएसी बात पर नाराज़ होकर पहले तो मुझे पीटा फिर मेरी कापी-किताबें और लत्ते-कपडे आंगन में फेंक दी कि जा निकल जा घर से. उस सामान में मेरा मिट्टी का गुल्लक भी था, जिसने आँगन को सिक्कों से पाट दिया. प्राथमिकता के आधार पर मैंने सिक्के बीने. सिक्कों ने मुठ्ठियाँ तानकर बावाज-ए-बुलंद कहा - हम एक हैं और कुल जमा छः रुपए हैं. उस समय इतने हीरे-जवाहरात. मैं किस मुगल वली अहद से कम था? निकल गया घर से. जाकर एक दूकान में फुल प्लेट छोले के साथ दो बन खाकर चाय पी. फटीचर क्लास का टिकट लेकर पिक्चर देखी और हाफ टाइम में भी कुछ खाया. मौजां ही मौजां.
एक दिन क्लास के कुछ लड़के हेड मास्साब से इसलिए पिट रहे थे कि वे पिछले दिन स्कूल न आकर पिक्चर चले गए थे. बात न जाने कैसे लीक हो गयी. लड़कों ने हालांकि काफी बचाव किया. किसी ने कहा कि मास्साब मेरे घर में पूजा थी इसलिए नहीं आया. दूसरे ने कहा - मैं जीजाजी के साथ चितई गया था. एक ने कहा - मेरी ईजा को छूत हो गयी थी मुझे खाना पकाने में देर हो गयी थी. मास्साब पर कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने सुताई जारी रखी - सालो घर से आते हो स्कूल और जाते हो पिक्चर. पिक्चर देख के बनेगा तेरा भविष्य? अच्छा बताओ कौन सी पिक्चर देखी? बता रे तू बता? एक ने बक दिया - जी, सुहागन. बगल में ही प्राइमरी स्कूक की अध्यापिकाएं थीं. मास्साब उनमें से ज़्यादातर से खार खाए रहते थे. एक अध्यापिका से खासकर जो उम्र हो जाने के बावजूद अविवाहित थी. मास्साब के मुताबिक उनके चिडचिडेपन का कारण अविवाहित होना था. अच्छा मौका था उदगार व्यक्त करने का. आए-हाए सुहागन. किसे कहते हैं सुहागन जानते हो, किसी होती है? ऐसे ही हो जाते हैं सुहागन, इतनी अकड के साथ. शादी बाप नहीं करता, गुस्सा और नखरा हमसे. टांग तोड़ दूंगा सालो जो फिर स्कूल से भाग कर पिक्चर गए तो.
(जारी)
1 comment:
पैसे बचा बचा तो खूब पिक्चर देखी है..
Post a Comment