अष्टभुजा शुक्ल के चंद पद प्रस्तुत हैं -
कविजन खोज रहे अमराई।
जनता मरे, मिटे या डूबे इनने ख्याति कमाई ॥
शब्दों का माठा मथ-मथकर कविता को खट्टाते।
और प्रशंसा के मक्खन कवि चाट-चाट रह जाते॥
सोख रहीं गहरी मुषकैलें, डांड़ हो रहा पानी।
गेहूं के पौधे मुरझाते, हैं अधबीच जवानी॥
बचा-खुचा भी चर लेते हैं, नीलगाय के झुंड।
ऊपर से हगनी-मुतनी में, खेत बन रहे कुंड॥
कुहरे में रोता है सूरज केवल आंसू-आंसू।
कविजन उसे रक्त कह-कहकर लिखते कविता धांसू॥
बाली सरक रही सपने में, है बंहोर के नीचे।
लगे गुदगुदी मानो हमने रति की चोली फींचे॥
जागो तो सिर धुन पछताओ, हाय-हाय कर चीखो।
अष्टभुजा पद क्यों करते हो कविता करना सीखो॥
कविजन खोज रहे अमराई।
जनता मरे, मिटे या डूबे इनने ख्याति कमाई ॥
शब्दों का माठा मथ-मथकर कविता को खट्टाते।
और प्रशंसा के मक्खन कवि चाट-चाट रह जाते॥
सोख रहीं गहरी मुषकैलें, डांड़ हो रहा पानी।
गेहूं के पौधे मुरझाते, हैं अधबीच जवानी॥
बचा-खुचा भी चर लेते हैं, नीलगाय के झुंड।
ऊपर से हगनी-मुतनी में, खेत बन रहे कुंड॥
कुहरे में रोता है सूरज केवल आंसू-आंसू।
कविजन उसे रक्त कह-कहकर लिखते कविता धांसू॥
बाली सरक रही सपने में, है बंहोर के नीचे।
लगे गुदगुदी मानो हमने रति की चोली फींचे॥
जागो तो सिर धुन पछताओ, हाय-हाय कर चीखो।
अष्टभुजा पद क्यों करते हो कविता करना सीखो॥
3 comments:
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति....
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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sundar rachnaa.....
अच्छी प्रस्तुति
होली की शुभकामनायें
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