क्लेरिनेट के एक सुर का भव्य एकांत
सुशोभित सक्तावत
एक साधारण सा किकनोट. तकरीबन हास्यास्पद. केवल एक डूबी हुई पल्स. बैसून और बैसेहौर्न्स के पस्त-आमफहम मूवमेंट जैसे जंग लगे साजों की सरसराहट. और अचानक इस सबसे ऊपर एक ओबो की पुकार. हवा में सितारे की तरह टंगा एक तनहा सिहरता हुआ सुर जो खुद को एक क्लेरीनेट की बांहों के हवाले कर देता है. एक अपूरणीय आकांक्षा का संगीत, जैसे ईश्वर की मद्धम बुदबुदाहट.
सेरेनेड फॉर विंड्स, बी फ़्लैट मेजर, के-३६१ ... यह मोत्सार्ट है.
वुल्फगैंग अमेडियस मोत्सार्ट.
मोत्सार्ट के सम्मोहन से मुकर हो पाना मुमकिन नहीं. उसके संगीत में कुछ ऐसी आत्म्ध्वंसात्मक त्वरा है, अंतहीन लयात्मकता और परिपूर्णता है कि उससे निज़ात यही है कि उसमें गर्क हो जाया जाए. मोत्सार्ट से हमें निहायत 'अन्कैनी' चीज़ें मिलती हैं. उसकी वायलिनों का विलाप सुनकर लगता है जैसे हम उसे अपनी मृत्युओं से परे सुन रहे हैं. कब्रों से परे, कुहासों से परे. उसका संगीत स्मृतियों में कहीं दूरस्थ अनुगूंज सा लगता है, पिछले जन्मों में कभी सुना हुआ, कुछ याद दिलाता हुआ. मोत्सार्ट को सुनना नींद में बारिश को सुनने की तरह है या फिर शीशे की दीवार से परे किसी जंगल की आदिम हरीतिमा को हठात निहारते रहना और हारकर रह जाना ... खला में. खलिश में.
यह बेबूझपन हमें मोत्सार्ट की तरफ खींचे लिए जाता है. मोत्सार्ट को जैसी पॉपुलरिटी मिली, वैसी बहुत कम क्लासिकल कम्पोज़र्स को मिली होगी. रौक स्टारों को भी मात करने वाली लोकप्रियता. विएना तो उसे अपना सगा बेटा मानता है. चौकलेट के रैपर हों या कॉफी के कप, अमेडियस की छवि विएना में हर जगह मिलेगी, लेकिन इसी विएना में मोत्सार्ट ने उपेक्षा का दंश भी सहा था. यहीं पर महज़ एक सैकड़ा ड्यूकेट्स के लिए उसने अपनी साँसें गिरवी रख दीं थीं. मोत्सार्ट शायद दुनिया का ऐसा इकलौता कम्पोजर होगा जिसने खुद के लिए शोकगीत रचा. रेक्वाइम फॉर द डैड. लेकिन कोचेल कैटेलोग की सबसे अंतिम पायदान पर मौजूद उसका यही शोकगीत उसका स्वैन-सॉंग है.
मोत्सार्ट ने पियानो को परवाज़ दी थी, ठीक वैसे ही जैसे शोपां ने पियानो को रात की कब्र में दफन कर दिया था. मोत्सार्ट से पहले क्लासिकी संगीत में कीबोर्ड इंस्ट्रूमेंट के रूप में हार्पिस्कौर्ड को तरजीह दी जाती थी. बाख सहित एनी बारोक कम्पोज़र अपने मेटाफिजिकल म्यूजिक के लिए ऑर्गन का इस्तेमाल करना पसंद करते थे. मोत्सार्ट के अग्रज जोसेफ हेडन सिम्फनी और स्ट्रिंग क्वार्टेट के पिता पुकारे गए. लेकिन यह मोत्सार्ट ही था जिसने सबसे पहले पियानो को क्लासिकी संगीत में केन्द्रीयता प्रदान की. बीथोवन के सोनाटा और शोपां के नौक्चर्न्स के साथ पियानो ज़्यादा खुद्दारी के साथ अकेले (सोलो) होना अगर सीख पाता है तो उसके पीछे भी मोत्सार्ट की ही अभिप्रेरणा थी.
पश्चिमी क्लासिकी संगीत नश्वरता पर एक टिप्पणी है. वह नश्वरता के संकेतों के साथ खेलता है. मुझे लगता है यही उसका मूड है. विवाल्दी के वसंत में भी तितलियों के पंख गीले-से लगते हैं. बीथोवन की 'मूनलाईट' भी निर्वेद और निस्संगता का मूर्तन जान पड़ती है. मोत्सार्ट के कैंचरटो भी इसी विश्वदृष्टि में आते हैं और वह इस फलसफाई रेटरिक को संगीत के व्याकरण में रच देता है.
मिलोश फोरमैन की फिल्म 'अमेडियस' मोत्सार्ट के मिथक को सहलाती है. फिल्म के अंत में तमाम दुरभिसंधियों के ऊपर मोत्सार्ट की बेपरवाह खिलखिलाहट गूंजती है. मुझे लगता है यह मोत्सार्ट के लिए एक सांगरूपक है - समूची कम्पोजीशन के ऊपर टंगा क्लेरिनेट का एक तनहा सुर जो अपनी नियति के भव्य एकांत में स्थगित था.
सुशोभित सक्तावत
एक साधारण सा किकनोट. तकरीबन हास्यास्पद. केवल एक डूबी हुई पल्स. बैसून और बैसेहौर्न्स के पस्त-आमफहम मूवमेंट जैसे जंग लगे साजों की सरसराहट. और अचानक इस सबसे ऊपर एक ओबो की पुकार. हवा में सितारे की तरह टंगा एक तनहा सिहरता हुआ सुर जो खुद को एक क्लेरीनेट की बांहों के हवाले कर देता है. एक अपूरणीय आकांक्षा का संगीत, जैसे ईश्वर की मद्धम बुदबुदाहट.
सेरेनेड फॉर विंड्स, बी फ़्लैट मेजर, के-३६१ ... यह मोत्सार्ट है.
वुल्फगैंग अमेडियस मोत्सार्ट.
मोत्सार्ट के सम्मोहन से मुकर हो पाना मुमकिन नहीं. उसके संगीत में कुछ ऐसी आत्म्ध्वंसात्मक त्वरा है, अंतहीन लयात्मकता और परिपूर्णता है कि उससे निज़ात यही है कि उसमें गर्क हो जाया जाए. मोत्सार्ट से हमें निहायत 'अन्कैनी' चीज़ें मिलती हैं. उसकी वायलिनों का विलाप सुनकर लगता है जैसे हम उसे अपनी मृत्युओं से परे सुन रहे हैं. कब्रों से परे, कुहासों से परे. उसका संगीत स्मृतियों में कहीं दूरस्थ अनुगूंज सा लगता है, पिछले जन्मों में कभी सुना हुआ, कुछ याद दिलाता हुआ. मोत्सार्ट को सुनना नींद में बारिश को सुनने की तरह है या फिर शीशे की दीवार से परे किसी जंगल की आदिम हरीतिमा को हठात निहारते रहना और हारकर रह जाना ... खला में. खलिश में.
यह बेबूझपन हमें मोत्सार्ट की तरफ खींचे लिए जाता है. मोत्सार्ट को जैसी पॉपुलरिटी मिली, वैसी बहुत कम क्लासिकल कम्पोज़र्स को मिली होगी. रौक स्टारों को भी मात करने वाली लोकप्रियता. विएना तो उसे अपना सगा बेटा मानता है. चौकलेट के रैपर हों या कॉफी के कप, अमेडियस की छवि विएना में हर जगह मिलेगी, लेकिन इसी विएना में मोत्सार्ट ने उपेक्षा का दंश भी सहा था. यहीं पर महज़ एक सैकड़ा ड्यूकेट्स के लिए उसने अपनी साँसें गिरवी रख दीं थीं. मोत्सार्ट शायद दुनिया का ऐसा इकलौता कम्पोजर होगा जिसने खुद के लिए शोकगीत रचा. रेक्वाइम फॉर द डैड. लेकिन कोचेल कैटेलोग की सबसे अंतिम पायदान पर मौजूद उसका यही शोकगीत उसका स्वैन-सॉंग है.
मोत्सार्ट ने पियानो को परवाज़ दी थी, ठीक वैसे ही जैसे शोपां ने पियानो को रात की कब्र में दफन कर दिया था. मोत्सार्ट से पहले क्लासिकी संगीत में कीबोर्ड इंस्ट्रूमेंट के रूप में हार्पिस्कौर्ड को तरजीह दी जाती थी. बाख सहित एनी बारोक कम्पोज़र अपने मेटाफिजिकल म्यूजिक के लिए ऑर्गन का इस्तेमाल करना पसंद करते थे. मोत्सार्ट के अग्रज जोसेफ हेडन सिम्फनी और स्ट्रिंग क्वार्टेट के पिता पुकारे गए. लेकिन यह मोत्सार्ट ही था जिसने सबसे पहले पियानो को क्लासिकी संगीत में केन्द्रीयता प्रदान की. बीथोवन के सोनाटा और शोपां के नौक्चर्न्स के साथ पियानो ज़्यादा खुद्दारी के साथ अकेले (सोलो) होना अगर सीख पाता है तो उसके पीछे भी मोत्सार्ट की ही अभिप्रेरणा थी.
पश्चिमी क्लासिकी संगीत नश्वरता पर एक टिप्पणी है. वह नश्वरता के संकेतों के साथ खेलता है. मुझे लगता है यही उसका मूड है. विवाल्दी के वसंत में भी तितलियों के पंख गीले-से लगते हैं. बीथोवन की 'मूनलाईट' भी निर्वेद और निस्संगता का मूर्तन जान पड़ती है. मोत्सार्ट के कैंचरटो भी इसी विश्वदृष्टि में आते हैं और वह इस फलसफाई रेटरिक को संगीत के व्याकरण में रच देता है.
मिलोश फोरमैन की फिल्म 'अमेडियस' मोत्सार्ट के मिथक को सहलाती है. फिल्म के अंत में तमाम दुरभिसंधियों के ऊपर मोत्सार्ट की बेपरवाह खिलखिलाहट गूंजती है. मुझे लगता है यह मोत्सार्ट के लिए एक सांगरूपक है - समूची कम्पोजीशन के ऊपर टंगा क्लेरिनेट का एक तनहा सुर जो अपनी नियति के भव्य एकांत में स्थगित था.
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