जनाब मेहदी हसन की क्लैसिकल कंसर्ट की तीसरी पेशकश. राग यमन कल्याण में तैयार की गयी यह गज़ल आरज़ू लखनवी की है. सारंगी पर उस्ताद सुलतान खान हैं और तबले पर उस्ताद शौकत हुसैन खान. हारमोनियम पर साथ दे रहे हैं उस्ताद के सुपुत्र कामरान हसन. ये रहे गज़ल के बोल -
मुग्हम बात पहेली ऐसी, बस वो ही बूझे जिसको बुझाये
भेद न पाये तो घबराए, भेद जो पाये तो घबराए
जिसको अकेले में आ आ कर, ध्यान तेरा रह रह के सताए
चुपके चुपके बैठा रोये, आंसू पोंछे और रह जाए
सारी कहानी बेचैनी की माथे पे लिख देती है
ऐसी बात कि घुटते घुटते मुँह तक आए और रह जाए
आरज़ू अपनी धुन का है पक्का ठान चुका है मरने की
जाना बूझा रोग है यह तो समझे हुए को क्या समझाए !
(मुग्हम का मतलब हुआ अस्पष्ट. बाकी गज़ल समझना आसान है.)
1 comment:
subah ki shaandaar shuruat... majaa aa gaya Pandeyji... bahut bahut dhanyawaad..
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